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बृहत्कल्पसूत्रनी प्रस्तावना रूपरेखा ज आपवामां आवे छे । प्रारंभमां आपणे जाणी लईए के निग्रंथ-निर्ग्रन्थीसंघना व्यवस्थापक महामान्य स्थविरो कोण हता ? एमने कये नामे ओळखवामां आवता अने तेमना अधिकारो अने जवाबदारीओ शां शां हतां ? ।
निग्रंथ-निग्रंथीसंघमा जवाबदार महामान्य स्थविरो पांच छे-१ आचार्य, २ उपाध्याय, ३ प्रवर्तक, ४ स्थविर अने ५ रत्नाधिक । आ पांचे जवाबदार स्थविरमहानुभावो अधिकारमा उत्तरोत्तर उतरता होवा छतां तेमनुं गौरव लगभग एकधारुं मानवामां आव्युं छे । आ पांचे संघपुरुषो संघव्यवस्था माटे जे कांई करे ते परस्परनी सहानुभूति अने जवाबदारीपूर्वक ज करी शके, एवी तेमां व्यवस्था छ । खुद आचार्यभगवंत सौथी विशेष मान्य व्यक्ति होवा छतां महत्त्वना प्रसंगमा पोतानी साथेना उपाध्याय आदि स्थविरोनी सहानुभूति मेळव्या विना कशुं य करी न शके, एवी आमां योजना छ । एकंदर रीते जैन संघव्यवस्थामा व्यक्तिस्वातंत्र्यने ओछामा ओर्छ अथवा नहि जेवू ज स्थान छे; खरी रीते 'नथी' एम कहीए तो खोटुं नथी । आ ज कारण छे के जैन धार्मिक कोई पण प्रकारनी संपत्ति कदि व्यक्तिने अधीन राखवामां नथी आवी, छे पण नहि अने होवी पण न जोईए ।
१ आचार्यभगवंतनो अधिकार मुख्यत्वे निर्ग्रन्थनिर्ग्रन्थीसंघना उच्चकक्षाना अध्ययन अने शिक्षाने लगतो। २ उपाध्यायश्रीनो अधिकार साधुओनी प्रारंभिक अने लगभग माध्यमिक कक्षाना अध्ययन अने शिक्षाने लगतो छ। आ बन्नेय संघपुरुषो निग्रंथ-निग्रंथीसंघनी शिक्षा माटेनी जवाबदार व्यक्तिओ छे। ३ प्रवर्चकनो अधिकार साधुजीवनने लगता आचार-विचार-व्यवहारमा व्यवस्थित रीते अति गंभीरभावे निग्रंथ-निग्रंथीओने प्रवृत्ति कराववानो अने ते अंगेनी महत्त्वनी शिक्षा विषेनो छे । ४ स्थविरनो अधिकार जैन निग्रंथसंघमां प्रवेश करनार शिष्योने-निग्रंथोने साधुधर्मोपयोगी पवित्र आचारादिने लगती प्रारंभिक शिक्षा अध्ययन वगेरे विपेनो छे । त्रीजा अने चोथा नंबरना संघस्थविरो निग्रंथ-निग्रंथीसंघनी आचार-क्रियाविषयक शिक्षा उपरांत जीवन. व्यवहार माटे उपयोगी दरेक बाह्य सामग्री विषेनी एटले वस्त्र, पात्र, उपकरण, औषध वगेरे प्रत्येक बाबतनी जवाबदारी धरावनार व्यक्तिओ छे । पहेला बे संघस्थविरो निग्रंथनिग्रंथीसंघना ज्ञान विषेनी जवाबदारीवाळा छे अने बीजा वे संघस्थविरो निम्रन्थ-निग्रंथीसंघनी क्रिया-आचार विषेनी जवाबदारीवाळा छे । निग्रंथ-निर्ग्रन्थीसंघमां मुख्य जवाबदार आ चार महापुरुषो छ । एमने जे प्रकारनी जवाबदारी सोपवामां आवी छे तेनुं आपणे पृथक्करण करीए तो आपणने स्पष्टपणे जणाई आवशे के श्रमण वीर-वर्धमान भगवाने जे ज्ञान-क्रियारूप निर्वाणमार्गनो उपदेश कर्यो छे तेनी सुव्यवस्थित रीते आराधना, रक्षा अने पालन थई शके-ए वस्तुने लक्षमा राखीने ज प्रस्तुत संघस्थविरोनी स्थापना करवामां आवी छ।
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