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________________ आन्तर परिचय निर्माण जेना आधारे थई शके एवा मौलिक ग्रंथोर्नु अति प्रभावित ज्ञान अने तेनुं पारम्पर्य ते जमानाना निग्रंथो पासे रह्यं अने जैन आगमोनुं ज्ञान एकी साथे सर्वथा नाश पामी गयुं, तेमांना एकाद अंग, श्रुतस्कंध, अध्ययन के उद्देश जेटलुं य ज्ञान कोई पासे न रह्यु, एटलं ज नहि, एक गाथा के अक्षर पण याद न रह्यो; आ वस्तु कोई पण रीते कोईने य गळे ऊतरे तेवी नथी । अस्तु । दिगंबर श्रीसंघना अग्रणी स्थविर भगवंतोए गमे ते कारणे जैन आगमोने जतां कया होय, ते छतां ए वात चोकस छे के तेमणे जैन आगमोने जतां करीने पोतानी मौलिक ज्ञानसंपत्ति खोवा उपरांत बीजं घj घणुं खोयुं छे, एमां बे मत नथी। आजनां जैन आगमो मात्र सांप्रदायिक दृष्टिए ज प्राचीन छे तेम नथी, पण ग्रंथनी शैली, भाषाशास्त्र, इतिहास, समाजशास्त्र, ते ते युगनी संस्कृतिनां सूचन आदि द्वारा प्राचीनतानी कसोटी करनारा भारतीय अने पाश्चात्य विद्वानो अने स्कोलरो पण जैन आगमोनी मौलिकताने मान्य राखे छे । अहीं एक वात खास ध्यानमा राखवा जेवी छे के आजनां जैन आगमोमां मौलिक अंशो घणा घणा छ एमां शंका नथी, परंतु जेटलुं अने जे काई छ ए बधु य मौलिक छे, एम मानवा के मनाववा प्रयत्न करवो ए सर्वज्ञ भगवंतोने दूषित करवा जेवी वस्तु छ । आजनां जैन आगमोमां एवा घणा घणा अंशो छे, जे जैन आगमोने पुस्तकारूढ करवामां आव्यां त्यारे के ते आसपासमां ऊमेराएला के पूर्ति कराएला छे, केटलाक अंशो एवा पण छे के जे जैनेतर शास्त्रोने आधारे उमेराएला होई जैन दृषिथी दूर पण जाय छे, इत्यादि अनेक बाबतो जैन आगमना अभ्यासी गीतार्थ गंभीर जैन मुनिगणे विवेकथी ध्यानमा राखवा जेवी छ । निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थीसंघना महामान्य स्थविरो आपणा राष्ट्रीय उत्थान माटेनी हीलचालोना युगमा जेम हजारो अने लाखोनी संख्यामा देशना महानुभावो बहार नीकळी पड्या हता, ए ज रीते ए पण एक युग हतो ज्यारे जनतामांनो अमुक मोटो वर्ग संसारना विविध त्रासोथी उभगीने श्रमग-वीर-वर्धमान भगवानना त्यागमार्ग तरफ वल्यो हतो । आथी ज्यारे निर्ग्रन्थसंघमां राजाओ, मंत्रीओ, धनाढ्यो अने सामान्य कुटुंबीओ पोताना परिवार साथे हजारोनी संख्यामां दाखल थवा लाग्या त्यारे तेमनी व्यवस्था अने नियन्त्रण माटे ते युगना संघस्थविरोए दीर्घदर्शितापूर्वक संघना नियंत्रण माटेना नियमोनुं अने नियन्त्रण राखनार महानुभाव योग्य व्यक्तिओ अने तेमने विषेना नियमोनुं निर्माण कयु हतुं। आ विषेनुं विस्तारथी विवेचन करवा माटे एक स्वतंत्र पुस्तक ज लखवु जोईए, परंतु अयारे तो अही प्रसंगोपात मात्र ते विषेनी स्थूल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002515
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Part 06
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorChaturvijay, Punyavijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year2002
Total Pages424
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bruhatkalpa
File Size20 MB
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