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वृहत्कल्पसूत्रनी प्रस्तावना ग्रंथनी गाथाओना अंको सळंग ज राख्या छे । अने ए रीते वधी मळीने ६४९० गाथाओ थई छ । प्राचीन भाष्यप्रतिओमां अनेक कारणसर गाथाओ बेवडावाथी सेम ज अस्तव्यस्त गाथाओ अने गाथांको होवाथी तेनी गाथासंख्यानी अमे उपेक्षा करी छ । अमारो गाथाक्रम अति व्यवस्थित, प्रामाणिक अने अति सुसंगत छ। भाषादृष्टिए प्राचीन भाष्यप्रतिओनी नाथानी भाषामा अने आचार्य श्रीमलयगिरि-क्षेमकीर्त्तिए आपेली भाष्यगाथानी भाषामां घणो घणो फरक छे; परंतु अमारे टीकाकारोने न्याय आपवानो होवाथी तेमणे पोतानी टीकामा जे स्वरूपे गाथाओ लखी छे तेने ज प्रमाण मानीने अमे काम चलाव्युं छे । आम छतां स्थाने स्थाने अनेकविध महत्त्वना पाठभेदो वगेरे नोधयामा अमे आळस कयुं नथी। भाष्यनी भाषा मुख्यत्वे प्राकृत ज छे, तेम छतां घणे स्थळे गाथाओमां मागधी अने शौरसेनीना प्रयोगो पण जोवामां आवे छे । केटलीक गाथाओ प्रसंगवश मागधी के शौरसेनी भापामां पण रचायली छ । छंदनी दृष्टिए आ भाष्य प्रधानपणे आर्याछंदमां रचायुं छे, तेम छतां संख्याबंध स्थळे औचित्य प्रमाणे वीजा बीजा छंदो पण आवे छे । वृत्ति
प्रस्तुत महाशास्त्रनी वृत्तिनो प्रारंभ आचार्य श्रीमलयगिरिए कयों छे अने तेनी समाप्ति लगभग सवासो वर्ष बाद तपा आचार्यप्रवर श्रीक्षेमकीर्तिसूरिए करी छ । वृत्तिनी भाषा मुख्यत्वे संस्कृत होवा छतां तेमां प्रसंगोपात आवती कथाओ प्राकृत ज छे । वृत्तिनुं प्रमाण सूत्र-नियुक्ति-भाष्य मळीने ४२५०० श्लोक लगभग छे, एटले जो आमांथी सूत्र नियुक्तिभाष्यने बाद करीए तो वृत्तिनुं प्रमाण ३४५०० श्लोक लगभग थाय छे । आमांथी लगभग ४००० श्लोकप्रमाण टीका आचार्य श्रीमलयगिरिनी छे अने बाकीनी आखीए टीका आचार्य श्रीक्षेमकीर्तिप्रणीत छ । चूर्णी-विशेषचूर्णी
चूर्णी अने विशेषचूर्णी, ए बृहत्कल्पसूत्र उपरनी प्राचीन प्राचीनतम व्याख्याओ छ । आ व्याख्याओ संस्कृतमिश्रित प्राकृतप्रधान भाषामां रचाएली छे । आ व्याख्याओनी प्राकृतभाषा आचार्य श्रीहेमचन्द्रादिविरचिरा प्राकृतव्याकरणादिना नियमोने वशवर्ती भाषा नथी, परंतु एक जुदा कुलनी ज प्राकृतभाषा छ । आ व्याख्याओमा आवता विविध प्रयोगो जोतां एनी भाषानुं नाम शुं आपq ए प्रश्न एक कोयडारूप ज छ । हुं मार्नु छ के आने कोई स्वतंत्र भाषामुं नाम आपq ते करतां "मिश्रप्राकृतभाषा" नाम आपQ ए ज पधारे संगत वस्तु छ । भापाना विषयमा रस लेनार प्रत्येक भाषाशास्त्रीने माटे जैन आगमो अने तेना उपरना नियुक्ति-भाष्य-चूर्णी-विशेषची ग्रंथोनुं अध्ययन अने अव. लोकन परम आवश्यक वस्तु छे ।
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