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आन्तर परिचय
बृहद्राष्य
निर्युक्ति, भाष्य अने बृहद्भाष्य ए त्रणे य जैन आगम उपरना व्याख्यामंत्री हम्मेशां पद्यबंध ज होय छे । प्रस्तुत बृहद्भाष्य पण गाथाबंध छे । टीकाकार आचार्य श्री क्षेमकीर्तिमहाराज सामे प्रस्तुत बृहद्भाष्य संपूर्ण होवा छतां आजे एने संपूर्ण मेळवावा असे भाग्यशाळी थई शक्या नथी । आजे ज्यां ज्यां आ महाभाष्यनी प्रतिओ छे त्यां प्रथम खंड मात्र छे । जेसलमेर दुर्गना श्रीजिनभद्रसूरि जैन ज्ञानभंडारमां ज्यारे आ मंथना बे खंडो जोया त्यारे मनमां आशा जन्मी के आ ग्रंथ पूर्ण मळ्यो, पण तपास करतां निराशा साथै जोयुं के बन्ने य प्रथम खंडनी ज नकलो छे । आनी भाषा पण प्राचीन मिश्र प्राकृतभाषा छे अने मुख्यत्वे आर्या छंद होवा छतां प्रसंगोपात बीजा बीजा पण छंदो छ ।
अवचूरी
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बृहत्कल्पसूत्र उपर एक अवचूरी ( अतिसंक्षिप्त टीका ) पण छे । एना प्रणेता श्री सोभाग्यसागरसूरि छे अने ए १५०० श्लोकप्रमाण छे । मूळ ग्रंथना शब्दार्थने स्पष्ट रीते समजवा इच्छनार माटे आ अवचूरी महत्त्वनी छे अने ए, टीकाने अनुसरीने ज रचाएली छे । प्रस्तुत अवचूरीनी प्रति संवत् १६२८ मां लखाएली होई ए ते पहेलां रचाएकी छे ।
आन्तर परिचय
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प्रस्तुत बृहत्कल्प महाशाखना आन्तर परिचय माटे अमे दरेक भागमां विस्तृत विषयानुक्रमणिका आपी छे, जे बधा य भागोनी मळीने १५२ पृष्ठ जेटली थाय छे, ते ज पर्याप्त छे । आ अनुक्रमणिका जोवाथी आखा ग्रंथमां शुं छे ते, दरेके दरेक विद्वान् मुनिवर आदि सुगमताथी जाणी- समजी शकशे । तेम छतां प्रस्तुत महाशास्त्र ए, एक छेदशास्त्र तरीके ओळखातुं होई ते विषे अने तेना अनुसंधानमां जे जे खास उचित होय ते अंगे विचार करवो अति आवश्यक छे ।
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छेद आगमो
छेद आगमो बधां मळीने छनी संख्यामां छे, जेनो उल्लेख अने तेने लगता विशाळ व्याख्या साहित्यनी नोंध अमे उपर करी आव्या छीए । आ छेदआगमोमां, मनसा वाचा कर्मणा अविसंवादी जीवन जीवनार परमज्ञानी तीर्थंकर, गणधर, स्थविर आदि महर्षिओए जगतना मुमुक्षु निर्बंथ - निर्मथीओने एकांत कल्याण साधना माटे जे मौलिक अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रहव्रतादिरूप मार्ग दर्शाव्यो छे ते अंगे ते ते देश, काळ तेम ज ते ते युगना मानवोनी स्वाभाविक शारीरिक अने मानसिक वृत्तिओ अने वळणने ध्यानमलई बाधक नियमोनुं विधान करवामां आव्युं छे; जेने शास्त्रीय परिभाषामा
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