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ग्रंथ-परिचय
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सूत्र' नाम आप्यु छे ते योग्य ज छ । प्रस्तुत सूत्र प्रमाणमां नानुं एटले के मात्र ४७५ श्लोकप्रमाण होवा छतां एमां रहेला गांभीर्यनी दृष्टिए एने एक महाशास्त्र ज कवू जोईए । आ एक प्राचीनतम आचारशास्त्र छे अने जैन धर्मशास्रोमा तेनुं स्थान घj ऊंचु छ । तेमांय जैन श्रमणो माटे तो ए जीवनधर्मनु महाशास्त्र छ । आनी भाषा प्राचीन प्राकृत अथवा अर्धमागधी होवा छतां जेम वीजां जैन आगमो माटे बन्युं छे तेम आनी भाषाने पण टीकाकार आचार्य श्रीमलयगिरि अने श्रीक्षेमकीर्तिसूरिए बदली नाखी छे । खरूं जोतां आq परिवर्तन केटले अंशे उचित छ ए एक प्रश्न ज छे तेम छनां साथे साथे आजे ए पण एक मोटो सवाल छ के-ते ते आगमोनी प्राचीन प्राचीनतम विविध प्रतिओ के तेनां प्रत्यन्तरो सामे राखीए त्यारे तेमां जे भाषा अने प्रयोगो विषयक वैविध्य जोवामां आवे छे ते, समर्थ भाषाशास्त्रीने गळे पण डचुरो वाळी दे तेवां होय छे । तेमां पण नियुक्ति, भाष्य, महाभाष्य, चूर्णी, विशेषचूर्णी वगेरे व्याख्याकारोना अपरिमित अने संख्यातीत पाठभेदो अने पाठविकारो मळे त्यारे तो चक्कर आवी जाय तेवु बने एवी वात छ । आ परिस्थितिमां अमुक जवाबदारी लईने बेठेला टीकाकार आदि विषे आपणे एकाएक बोलवा जेवू कशुं य नथी रहेतुं । व्याख्यासाहित्य
कल्पमहाशास्त्र उपर व्याख्यानरूपे नियुक्ति-भाष्य, चर्णी, विशेषचर्णी, बृहद्भाष्य, वृत्ति, अवचूरी अने स्तवक ग्रंथोनी रचना थई छे। ते पैकी आ प्रकाशनमा मूळसूत्र, नियुक्तिभाष्य अने वृत्तिने प्रसिद्ध करवामां आवेल छे, जेनो परिचय अहीं आपवामां आवे छे । नियुक्ति-भाष्य-- ____ आवश्यकनियुक्तिमां खुद नियुक्तिकारभगवाने " कप्पस्स उ णिज्जुत्ति" (गाथा ९५) एम जणावेल होवाथी प्रस्तुत कल्पमहाशास्त्र उपर नियुक्ति रचवामां आवी छे । तेम छता आजे नियुक्ति अने भाष्य, ए बन्ने य परस्पर भळी जईने एक ग्रंथरूप थई जवाने लीधे तेनुं पृथक्करण प्राचीन चूर्णीकार आदि पण करी शक्या नथी। टीकाकार
आचार्य श्रीमलयगिरिए पण " सूत्रस्पर्शिकनियुक्तिर्भाष्यं चैको ग्रन्थो जातः" एम जणावी नियुक्ति अने भाष्यने जुदा पाडवानुं जतुं कयु छे; ज्यारे आचार्य श्रीक्षेमकीर्त्तिए ए प्रयत्न कर्यो छ । तेम छतां तेमां तेओ सफळ नथी थया बल्के एथी गोटाळो ज थयो छ । एज कारण छे के टीकानां प्रत्यन्तरोमां तथा चूर्णी-विशेषचूर्णीमा ए माटे विविध निर्देशो मळे छे (जुओ परिशिष्ट चोथु)। स्वतंत्र प्राचीन भाष्यप्रतिओमां पण आ अंगेनो कशो विवेक नजरे नथी आवतो । आ कारणसर अमे अमारा प्रस्तुत प्रकाशनमा नियुक्ति-भाष्य
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