________________
७७
बृहत्कल्पसूत्रनी प्रस्तावना
बीजो खंड क्यांय जोवामां आव्यो नथी। आचार्य श्री क्षेमकीर्त्तिए बृहत्कल्पनी टीका रची त्यारे तेमना सामे आ बृहद्भायनी पूर्ण नकल हती ए तेमणे टीकामां आपेलां बृहद्भाष्यनां उद्धरणोथी निश्चितपणे जाणी शकाय छे ।
कल्पची अने विशेषचूर्णी-कल्पचूर्णी अने कल्प विशेषचूर्णीनी जे बे ताडपत्रीय प्राचीन प्रतीओ आजे मळे छे तेमां लखावनाराओनी गरबडथी एटले के चूर्गी-विशेषचूर्णीना खंडोनो विवेक न करवाथी केटलीक प्रतिओमां चूर्णी-विशेषचूर्णी- मिश्रण थई गयुं छे ।
पंचकल्पमहाभाष्य--पंचकल्पमहाभाष्य ए ज पंचकल्पसूत्र छे । घणाखरा विद्वान् साधुओ एवी भ्रमणामां छे के-पंचकल्पसूत्र उपरनुं भाष्य ते पंचकल्पभाष्य अने ते उपरनी चूर्णी ते पंचकल्पचूर्णी, परंतु आ तेमनी मान्यता भ्रान्त अने भूलभरेली छे । पंचकल्प नामर्नु कोई सूत्र हतुं नहीं अने छे पण नहीं। बृहत्कल्पसूत्रनी केटलीक प्राचीन प्रतिओना अंतमां "पंचकल्पसूत्रं समाप्तम्" आवी पुष्पिकामात्रथी भूलावामां पडीने केटलाको एम कहे छे के-में अमुक भंडारमा जोयुं छे पण आ भ्रान्त मान्यता छ । खरी रीते, जेम पिंडनियुक्ति ए दशवकालिकनियुक्तिनो अने ओघनियुक्ति ए आवश्यकनियुक्तिनो पृथक् करेलो अंश छे, ते ज रीते पंचकल्पभाष्य ए कल्पभाष्यनो एक जुदो पाडेलो विभाग छे; नहीं के स्वतंत्र कोई सूत्र । आचार्य श्रीमलयगिरि महाराज अने श्रीक्षेमकीर्तिसूरि महाराज प्रस्तुत बृहत्कल्पसूत्रनी टीकामां वारंवार आ रीते ज उल्लेख करे छे ।
निशीथविशेषची-आजे जेने सौ निशीथचूर्णी तरीके ओळखे छे ए निशीथसूत्र उपरनी विशेषचूर्णी छे। निशीथचूर्णी होवी जोईए परंतु आजे एनो क्यांय पत्तो नथी । आजे तो आपणा सामे निसीहविसेसचुण्णी ज छ ।
छेद आगमसाहित्यने जाण्या पछी आपणे ग्रंथना मूळ विषय तरफ आवीए । ग्रंथर्नु मूळ नाम
प्रस्तुत — बृहत्कल्पसूत्र 'र्नु मूळ नाम ‘कप्पो' छे । तेनी प्राकृत-संस्कृत व्याख्याटीकाओने पण कप्पभासं, कप्पस्स चुण्णी आदि नामोथी ज ओळखवामां आवे छे । एटले निष्कर्ष ए थयो के-आ ग्रंथर्नु · बृहत्कल्पसूत्र' नाम पाछळथी शरू थयुं छे । तेनुं कारण ए छे के दशाश्रुतस्कंधना आठमा अध्ययनरूप पर्युषणाकल्पसूत्रनी जाहेर वाचना वध्या पछी ए कल्पसूत्र अने प्रस्तुत कल्पशास्त्रने अलग अलग समजवा माटे एकनुं नाम कल्पसूत्र अने प्रस्तुत कल्पशास्त्रनुं नाम बृहत्कल्पसूत्र राख वामां आव्युं छे । आजे जैन जनतानो मोटो भाग ' कल्पसूत्र' नामथी पर्युषगाकल्पसूत्रने ज समजे छे, बल्के 'कल्पसूत्र' नाम पर्युषणाकल्पसूत्र माटे रूढ थई गयुं छे। एटले आ शास्त्रने भिन्न समजवा माटे 'बृहत्कल्प
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org