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________________ प्रतिओनो परिचय ५४ प्रकारनी के-टीकानी ज अमुक प्रति के प्रतिओमां अमुक गाथाओने नियुक्तिगाथा तरीके जणावी छे, त्यारे अमुक प्रतिओमां ए ज गाथाओने पुरातनगाथा, संग्रहगाथा, द्वारगाथा के सामान्यगाथा तरीके जणावी छे । ए ज रीते अमुक प्रति के प्रतिओमां अमुक गाथाओने पुरातनगाथा तरीके जणावी छे त्यारे एज गाथाओने बीजी प्रति के प्रतिओमां नियुक्तिगाथा, संग्रहगाथा आदि तरीके जणावी छ । आ रीते आ आखा य ग्रंथमा गाथाओना निर्देशना विषयमां खूब ज गोटाळो थयो छे । आचार्य श्रीक्षेमकीर्तिसूरिवरना जमाना पहेला लखायेली कल्पलघुभाष्य अने महाभाष्यनी प्राचीन प्रतिओमां तेमज चूर्णी-विशेषचूर्णीमां पण नियुक्तिगाथा आदिनो जे विवेक करवामां आव्यो नथी अथवा थई शक्यो नथी, ए विवेक आचार्य श्रीक्षेमकीर्तिसूरिवरे शाना आधारे कर्यो ए वस्तु विचारणीय ज छे । भगवान् श्रीमलयगिरि महाराजे तो एम ज कही दीधुं छे के "नियुक्ति अने भाष्य ए बन्ने एकग्रंथरूपे परिणमी गयां छे.” ज्यारे आचार्य श्रीक्षेमकीर्तिसूरिवरे नियुक्तिगाथा, भाष्यगाथा आदिना विवेकमाटे स्वतंत्र प्रयत्न कर्यो होई एमनी टीका शरू थाय छे त्यांथी अंतपर्यन्त आ निर्देशोनो गोटाळो चाल्या ज को छे ( आ माटे जुओ प्रस्तुत विभागने अंते आपेलुं चोथु परिशिष्ट ) । खलं जोतां आ विषे आपणने एम लाग्या सिवाय नथी रहेतुं के आचार्य श्रीक्षेमकीर्ति महाराजे पूज्य आचार्य श्रीमलयगिरि सूरिवरना दीर्घदृष्टिभर्या राहने छोडीने प्रस्तुत ग्रंथमा नियुक्तिगाथा आदिने जुदी पाडवानो जे निराधार प्रयत्न कर्यो छे ए जरा य औचित्यपूर्ण नथी । ए ज कारण छे के-प्रस्तुत टीका प्रतिओमां गाथाओना निर्देश अंगे महान् गोटाळो थयो छे। आ उपरांत पूज्य आचार्य श्रीमलयगिरिसूरिकृत टीकाविभागमां वधाराना पाठो के पाठभेद आदि खास कशु य नथी, ज्यारे आचार्य श्रीक्षेमकीर्तिसूरिकृत टीकामां विषम पाठभेदो, विषम गाथानिर्देशो, विषम गाथाक्रमो, ओछीवत्ती गाथाओ अने टीकाओ विगेरे घणु ज छे । ए जोतां एम कहेवु जरा य अतिशयोक्तिभयुं नथी के प्रस्तुत ग्रंथनी टीकामां खुद पंथकारे ज वारंवार घणो घणो फेरफार कर्यो हो। अमालं आ कथन निराधार नथी, परंतु प्रस्तुत सटीक बृहत्कल्पसूत्रनी ग्रंथकारना जमानाना नजीकना समयमा लखा येली संख्याबंध प्राचीन प्रतिओने नजरे जोईने अमे आ वात कहीए छीए । संपादनपद्धति अने पाठभेदोनो परिचय प्रस्तुत सटीक बृहत्कल्पसूत्र महाशास्त्रना संशोधन माटे उपर जणाव्युं तेम नियुक्तिलघुभाष्य-टीकायुक्त प्राचीन अर्वाचीन ताडपत्रीय अने कागळनी मळीने सात प्रतिओ उपरांत केवळ सूत्र, केवळ लघुभाष्य अने केवळ चूर्णीनी ताडपत्रीय प्रतिओ तेम ज विशेषचूर्णी अने महाभाष्यनी कागळ उपर लखेली प्राचीन प्रतिओने, पूर्ण के अपूर्ण जेवी मळी तेवीने, आदिथी अंतसुधी अमे अमारा सामे राखी छे। आम छतां सौने जाणीने आश्चर्य थशे के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002515
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Part 06
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorChaturvijay, Punyavijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year2002
Total Pages424
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bruhatkalpa
File Size20 MB
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