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________________ ५३ बृहत्कल्पसूत्रनी प्रस्तावना भेदो पैकी केटलाक पाठो चूर्णीने अनुसरता अने केटलाक पाठो विशेषचूर्णीने अनुसरता होई ते दरेक पाठोनी तुलना माटे ते ते स्थळे चूर्णी अने विशेषचूर्णीना पाठी पण अमे टिप्पणीमां आपेला छे । भा० प्रतिमां अने कां० प्रतिमां एटला बधा पाठभेदो आवता रह्या छे, जेथी आ ठेकाणे एम कहीए तो जरा य वधारे पडतुं नहि गणाय के - आ आखो य ग्रंथ मोटे भागे भा० प्रति अने कां० प्रतिमां आवता पाठोभेदोथी ज भरेलो छे; खास करी पाछळना विभागो जोईए तो तो कां० प्रतिना पाठभेदोथी ज मुख्यत्वे भरेलो छे । आ बे प्रतिओना पाठभेद आदि विषे अमने एम लाग्युं छे के भा० प्रतिना दरेक पाठो, पाठभेदो आदि बुद्धिमत्ताभरेला अने विशद छे ज्यारे कां० प्रतिमांना केटलाक वधाराना पाठो ग्रन्थना विषयने विशद अने स्पष्ट करता होवा छतां केटलाय पाठो अने पाठभेदो पुनरुभिर्या अने केटलीक वार तो तद्दन सामान्य जेवा ज छे; एटलं ज नहि पण केटलीक वार तो ए पाठोमां सुधारो - वधारो करनारे भूलो पण करी छे, जे अमे ते ते स्थळे टिप्पणमां पाठो आपी जणावेल छे । आ ठेकाणे कां० प्रतिना पाठभेदोने अंगे अमारे बे बाबतो खास सुचववानी छे । जे पैकी एक ए के कां० प्रतिना केटलाक अतिसामान्य पाठभेदोनी अमे गंध लीधी. नथी । अने बीजी ए के प्रस्तुत ग्रंथना संपादननी शरुआतमां प्रतिओना पाठभेदोने अंगे जोईए तेवो विवेक नहि करी शकवाने लीघे कां प्रतिना केटलाक वधाराना पाठो अमे मूळमां दाखल करी दीधा छे, जे मूळमां आपका जोईए नहि । अमे ए दरेक पाठोने 4D आवा चिह्नना वचमां आपीने टिप्पणीमां सूचना करेली छेटले प्रस्तुत महाशास्त्रना वांचनार विद्वान् मुनिवर्गने मारी विज्ञप्ति छे के-तेमणे आ पाठोने मूळ तरीके न गणतां टिप्पणीमां समजी लेवा | प्रस्तुत नियुक्ति - भाष्य - वृत्तिसमेत बृहत्कल्प महाशास्त्राना संशोधन माटे एकत्र करेली सात प्रतिओमां आवता वधाराना पाठो अने पाठभेदादिने अंगे केटलीक वस्तु जणाच्या पछी ए वस्तु जणाववी जोईए के उपरोक्त सात प्रतिओमां पाठादिने अंगे एवी समविषमता छे के जेथी एनी मौलिकतानो निर्णय करवामां भलभला बुद्धिमानो पण चकराई जाय । केटलीक वार अमुक गाथानां अवतरणो त०डे०क० प्रतिमां होय तो ए अवतरणो भा० मो०० प्रतिमां न होय, केटलीक वार अमुक गाथानां अवतरणो मो०ले०कां० प्रतिमां होय तो ए अवतरणो भा०त०डे० प्रतिमां न होय, केटलीक वार त०डे० प्रतिमां होय तो बीजी प्रतोमां न होय केटलीक वार मो०० प्रतिमां होय तो ते सिवायनी बीजी प्रतिओमां न होय, केटलीक वार भा० प्रतिमां के कां० प्रतिमां अमुक अवतरणो होय तो ते सिवायनी बीजी प्रतिओमां ए न होय । आज प्रमाणे आ ग्रंथनी प्रतिओमां पाठो अने पाठभेदोने लगती एवी अने एटली बधी विषमताओ छे, जेने जोई सतत शास्त्रव्यासंगी विद्वान् मुनिवरो पण पाठोनी मौलिकतानो निर्णय करवामां मुझाई जाय । आ उपरांत आ ग्रंथमां एक मोटी विषमता गाथाओना निर्देशने अंगे छे । ते ए For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002515
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Part 06
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorChaturvijay, Punyavijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year2002
Total Pages424
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bruhatkalpa
File Size20 MB
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