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________________ ५१ वृहत्कल्पसूत्रनी प्रस्तावना बृहत्कल्पसूत्रनी प्रतिओनो परिचय । आजे विद्वान् मुनिगणना पवित्र करकमलोमा बृहत्कल्पसूत्र महाशास्त्रनो छट्ठो भाग उपहाररूपे अर्पण करवामां आवे छे । आ भाग साथे ४२००० श्लोकप्रमाण नियुक्तिभाष्य-वृत्तियुक्त कल्प महाशास्त्र समाप्त थाय छे । आ महाशास्त्रना संपादन अने संशोधन मादे अमे तेनी नीचे जणाव्या प्रमाणे सात प्रतिओ एकत्र करी हती ।। १ ता० प्रति-पाटण-श्रीसंघना भंडारनी ताडपत्रीय प्रति खंड बीजो तथा त्रीजो। २ मो० प्रति-पाटण मोदीना भंडारनी कागळनी प्रति खंड चार संपूर्ण । ३ ले० प्रति-पाटण लेहरु वकीलना भंडारनी कागळनी प्रति खंड चार संपूर्ण । ४ भा० प्रति-पाटण भाभाना पाडाना भंडारनी कागळनी प्रति खंड त्रण संपूर्ण । ५ त० प्रति-पाटण तपगच्छना भंडारनी कागळनी प्रति खंड प्रथम द्वितीय अपूर्ण । ६ डे० प्रति-अमदावाद डेलाना भंडारनी कागळनी प्रति एक विभागमां संपूर्ण । ७ कां० प्रति-वडोदरा-प्रवर्तक श्रीकान्तिविजयजी महाराजना भंडारनी कागळनी नवीन प्रति एक विभागमा संपूर्ण । प्रस्तुत महाशाखना संशोधनमां अमे उपर जणाव्या प्रमाणेनी सात प्रतिओनो साद्यन्त उपयोग कर्यो छे । आ सात प्रतिओ पैकी भाभाना पाडानी प्रति सिवायनी बधीये प्रतिओमां विविध प्रकारना पाठभेदो होवा छतां य ए बधीय प्रतिओने एक वर्गमां मूकी शकाय । तेनुं कारण ए छे के आ छ प्रतिओमां,-जेमां ताडपत्रीय प्रतिनो पण समावेश थाय छे,-तेमां एक ठेकाणे लेखकना प्रमादथी ५० श्लोक जेटलो अति महान् ग्रंथसंदर्भ पडी गयेलो-लखवामां रही गएलो एक सरखी रीते जोवामां आवे छे, ज्यारे मात्र भा० प्रतिमा ए आखो य ग्रंथसंदर्भ अखंड रीते जळवाएलो छ । प्रस्तुत संपादनमां अमे जे सात प्रतिओनो उपयोग कर्यो छे ते उपरांत पाटण आदिना भंडारनी बीजी संख्याबंध प्रतिओने अमे सरखावी जोई छे । परंतु ते पैकीनी एक पण प्रति अमारा जोवामां एवी नथी आवी जे अखंड पाठपरम्परा धरावनार भा० प्रति साथे मळी शके । आ रीते उपर जणावेली सात प्रतिओना बे वर्ग पडे छे। परन्तु आथी आगळ वधीने उपर्युक्त प्रतिओना विविध पाठो अने पाठभेद तरफ नजर करीए तो संशोधन माटे एकत्र करेली अमारी सात प्रतिओ सामान्य रीते चार विभागमां वहेंचाई जाय छे-एक वर्ग ता. मो० ले० प्रतिओनो, बीजो वर्ग त० डे० प्रतिओनो, त्रीजो वर्ग भा० प्रतिनो अने चोथो वर्ग कां० प्रतिनो । आ १ जुओ मुद्रित चोथा विभागना १००० पत्रनी २४मी पंक्तिथी १००२ पत्रनी २०मी पंक्ति सुधीनो अर्थात् २६०१ गाधानी अर्धी टीकाथी ३६०७ गाथानी अर्धी टीका सुधीनो हस्तचिह्नना वचमा रहेलो पाठ । आ समग्र टीका अंश, जेमां बीजा उद्देशानुं सोळमुं सूत्र पण समाय छे, ए आजना जैन ज्ञानभंडारोमांनी लगभग बधीए टीका प्रतिमाओमां पडी गएलो छे; जे. फक्त पाटण-भाभाना पाडानी प्रतिमां ज अखंड रीते जळवाएलो मळ्यो छे ।। - -- - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002515
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Part 06
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorChaturvijay, Punyavijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year2002
Total Pages424
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bruhatkalpa
File Size20 MB
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