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ग्रंथकारोनो परिचय अतिशयोक्ति नथी ज करता । पूज्य आचार्य श्रीमलयगिरिसूरिवरमां भले गमे तेटलुं विश्वविद्याविषयक पांडित्य हो ते छतां तेओश्री एकान्त निर्वृतिमार्गना धोरी अने निवृति. मार्गपरायण होई तेमने आपणे निर्वृतिमार्गपरायण जैनधर्मनी परिभाषामां आगमिक के सैद्धान्तिक युगप्रधान आचार्य तरीके ओळखीए ए ज वधारे घटमान वस्तु छे ।।
आचार्य मलयगिरिनु आन्तर जीवन-वीरवर्द्धमान-जैन-प्रवचनना अलंकारस्वरूप युगप्रधान आचार्यप्रवर श्रीमलयगिरि महाराजनी जीवनरेखा विषे एकाएक काई पण बोलवू के लखवू ए खरे ज एक अघळं काम छे ते छतां ए महापुरुष माटे ट्रंकमां पण लख्या सिवाय रही शकाय तेम नथी ।
आचार्य श्रीमलयगिरिविरचित जे विशाळ ग्रन्थराशि आजे आपणी नजर सामे विद्यमान छे ए पोते ज ए प्रभावक पुरुषना आन्तर जीवननी रेखा दोरी रहेल छ । ए प्रन्थराशि अने तेमां वर्णवायला पदार्थों आपणने कही रह्या छे के-ए प्रज्ञाप्रधान पुरुष महान ज्ञानयोगी, कर्मयोगी, आत्मयोगी अगर जे मानो ते हता। ए गुणधाम अने पुण्यनाम महापुरुषे पोतानी जातने एटली छूपावी छ के एमना विशाळ साहित्यराशिमां कोई पण ठेकाणे एमणे पोताने माटे " यदवापि मलयगिरिणा" एटला सामान्य नामनिर्देश सिवाय कशुं य लख्युं नथी । वार वार वन्दन हो ए मान-मदविरहित महापुरुषना पादपद्मने !!! । आचार्य श्रीक्षेमकीर्तिसूरि
आचार्य श्रीक्षेमकीर्तिसूरि तपागच्छनी परंपरामां थएल महापुरुप छे. एमना व्यक्तित्व विषे विशिष्ट परिचय आपवानां साधनोमां मात्र तेमनी आ एक समर्थ ग्रंथरचना ज छे. आ सिवाय तेमने विशे बीजो कशो ज परिचय आपी शकाय तेम नथी. तेमज आज सुधीमा तेमनी बीजी कोई नानी के मोटी कृति उपलब्ध पण थई नथी. प्रस्तुत ग्रंथनी-टीकानी रचना तेमणे वि. सं. १३३२ मां करी छे ए उपरथी तेओश्री विक्रमनी तेरमी-चौदमी सदीमां थएल आचार्य छे. तेमना गुरु आचार्य श्रीविजयचंद्रसूरि हता, जेओ तपगच्छना आद्य पुरुप आचार्य श्रीजगचंद्रसूरिवरना शिष्य हता अने तेओ बृहत्पोशालिक तरीके ओळखाता हता. आचार्य श्रीविजयचन्द्रसूरि बृहत्पोशालिक केम कहेवाता हता ते विषेनी विशेष हकीकत जाणवा इच्छनारने आचार्य श्रीमुनिसुंदरसूरिविरचित त्रिदशतरंगिणी-गुर्वावली श्लोक १०० थी १३४ तथा पंन्यास श्रीमान् कल्याणविजयजी संपादित विस्तृत गूर्जरानुवाद सहित तपागच्छ पट्टावली पृष्ठ १५३ जोवा भलामण छे.
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