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बृहत्कल्पसूत्रनी प्रस्तावना शासन सिवायना बधा य ग्रन्थो टीकात्मक ज छ। एटले आपणे आचार्य मलयगिरिने प्रन्थकार तरीके ओळखीए ते करतां तेमने टीकाकार तरीके ओळखवा ए ज सुसंगत छ । __ आचार्य श्रीमलयगिरिनी टीकारचना-आज सुधीमां आचार्य श्रीहरिभद्र, गंधहस्ती सिद्धसेनाचार्य, श्रीमान् कोट्याचार्य, आचार्य श्रीशीलाङ्क, नवाङ्गीवृत्तिकार श्रीअभयदेवमूरि, मलधारी आचार्य श्रीहेमचन्द्र, तपा श्रीदेवेन्द्रसूरि आदि अनेक समर्थ टीकाकार आचार्यों थई गया छे ते छतां आचार्य श्रीमलयगिरिए टीकानिर्माणना क्षेत्रमा एक जुदी ज भात पाडी छे । श्रीमलयगिरिनी टीका एटले तेमना पूर्ववर्ती ते ते विषयना प्राचीन ग्रन्थो, चूर्णी, टीका, टिप्पण आदि अनेक शास्त्रोना दोहन उपरांत पोता तरफना ते ते विषयने लगता विचारोनी परिपूर्णता समजवी जोईए। गंभीरमां गंभीर विषयोने चर्चती वखते पण भाषानी प्रासादिकता, प्रौढता अने स्पष्टतामां जरा सरखी पण ऊणप नजरे पडती नथी अने विषयनी विशदता एटली ज कायम रहे छ ।
__ आचार्य मलयगिरिनी टीका रचवानी पद्धति ट्रंकमां आ प्रमाणेनी छे-तेओश्री सौ पहेला मूळसूत्र, गाथा के श्लोकना शब्दार्थनी व्याख्या करता जे स्पष्ट करवानुं होय ते साथे ज़ कही दे छे । त्यारपछी जे विषयो परत्वे विशेष स्पष्टीकरणनी आवश्यकता होय तेमने " अयं भावः, किमुक्तं भवति, अयमाशयः, इदमत्र हृदयम्” इत्यादि लखी आखा य वक्तव्यनो सार कही दे छ । आ रीते प्रत्येक विषयने स्पष्ट कर्या पछी तेने लगता प्रासंगिक अने आनुषंगिक विषयोने चर्चवानुं तेमज तद्विषयक अनेक प्राचीन प्रमाणोनो उल्लेख करवानुं पण तेओश्री चूकता नथी। एटलुंज नहि पण जे प्रमाणोनो उल्लेख को होय तेने अंगे जरूरत जणाय त्यां विषम शब्दोना अर्थो, व्याख्या के भावार्थ लखवार्नु पण तेओ भूलता नथी, जेथी कोई पण अभ्यासीने तेना अर्थ माटे मुझावु न पंडे के फांफां मारवां न पडे। आ कारणसर तेमज उपर जणाववामां आव्यु तेम भाषानी प्रासादिकता अने अर्थ तेमज विषयप्रतिपादन करवानी विशद पद्धतिने लीधे आचार्य श्रीमलयगिरिनी टीकाओ अने टीकाकारपणुं समग्र जैन समाजमां खूब ज प्रतिष्ठा पाम्यां छ ।
आचार्य मलयगिरिनुं बहुश्रुतपणु-आचार्य मलयगिरिकृत महान् ग्रन्थराशिनुं अवगाहन करतां तेमां जे अनेक आगमिक अने दार्शनिक विषयोनी चर्चा छे, तेमज प्रसंगे प्रसंगे ते ते विषयने लगतां तेमणे जे अनेकानेक कल्पनातीत शास्त्रीय प्रमाणो टांकेलां छे; ए जोतां आपणे समजी शकीशु के-तेओश्री मात्र जैन वाङ्मयनु ज ज्ञान धरावता हता एम नहोतुं, परंतु उच्चमा उच्च कक्षाना भारतीय जैन-जनेतर दार्शनिक साहित्य, ज्योतिर्विद्या, गणितशास्त्र, लक्षणशास्त्र आदिने लगता विविध अने विशिष्ट शास्त्रीय ज्ञाननो विशाळ वारसो धरावनार महापुरुष हता। तेओश्रीए पोताना ग्रन्थोमा जे रीते पदार्थोनुं निरूपण कयु छे ए तरफ आपणे सूक्ष्म रीते ध्यान आपीशुं तो आपणने लागशे के ए महापुरुष विपुल वाङ्मयवारिधिने घुटीने पी ज गया हता। अने आम कहेवामां आपणे जरा पण
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