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________________ ग्रंथकारोनो परिचय ___ एक वखत गुरुमहाराजे तेमने सिद्धचक्रनो मंत्र आम्नाय साथे आप्यो, जे काळी चौदशनी राते पद्मिनी स्त्रीना उत्तरसाधकपणाथी सिद्ध करी शकाय | x x x x xत्रणे जणाए विद्यासाधनाना पुरश्चरणने सिद्ध करी, अम्बिकादेवीनी सहायथी भगवान् श्रीनेमिनाथ सामे बेसी सिद्धचक्रमंत्रनी आराधना करी।मन्त्रना अधिष्ठायक श्रीविमलेश्वरदेवे प्रसन्न थई त्रणे जणाने कर्दा के-तमने गमतुं वरदान मागो। त्यारे श्रीहेमचन्द्रे राजाने प्रतिबोध करवानु, श्रीदेवेन्द्रसरिए एक रातमां कान्तीनगरीथी सेरीसामां मंदिर लाववानुं अने श्रीमलयगिरिए जैन सिद्धान्तोनी वृत्तिओ रचवानुं वर माग्युं । त्रणेने तेमनी इच्छा प्रमाणेनुं वर आपी देव पोताने स्थाने चाल्यो गयो।" ____ उपर कुमारपालप्रबन्धमाथी जे उतारो आपवामां आव्यो छे एमां मलयगिरि नामनो जे उल्लेख छ ए बीजा कोई नहि पण जैन आगमोनी वृत्तिओ रचवार्नु वर मागनार होई प्रस्तुत मलयगिरि ज छे । आ उल्लेख टूको होवा छतां एमां नीचेनी महत्त्वनी बाबतोनो उल्लेख थएलो आपणे जोई शकीए छीए-१ पूज्य श्रीमलयगिरि भगवान् श्रीहेमचन्द्र साथे विद्यासाधन माटे गया हता। २ तेमणे जैन आगमोनी टीकाओ रचवा माटे वरदान मेळव्युं हतुं अथवा ए माटे पोते उत्सुक होई योग्य साहाय्यनी मागणी करी हती। ३ ' मलयगिरिमरिणा' ए उल्लेखथी श्रीमलयगिरि आचार्यपदविभूषित हता। ___ श्रीमलयगिरि अने तेमन सूरिपद-पूज्य श्रीमलयगिरि महाराज आचार्यपदभूषित हता के नहि ? ए प्रश्नो विचार आवतां, जो आपणे सामान्य रीते तेमना रचेला ग्रन्थोना अंतनी प्रशस्तिओ तरफ नजर करीशुं तो आपणे तेमां तेओश्री माटे " यदवापि मलयगिरिणा" एटला सामान्य नामनिर्देश सिवाय बीजो कशो य खास विशेष उल्लेख जोई शकीशु नहि । तेमज तेमना पछी लगभग एक सैका बाद एटले के चौदमी सदीनी शरुआतमा थनार तपागच्छीय आचार्य श्रीक्षेमकीर्तिमूरिए श्रीमलयगिरिविरचित वृह. कल्पसूत्रनी अपूर्ण टीकाना अनुसन्धानना मंगलाचरण अने उत्थानिकामां पण एमने माटे आचार्य तरीकेनो स्पष्ट निर्देश कयों नथी । ए विपेनो स्पष्ट उल्लेख तो आपणने पंदरमी सदीमा थनार श्रीजिनमण्डनगणिना कुमारपालप्रवन्धमा ज मळे छ । एटले सौ. १ बृहत्कल्पसूत्रनी टीका आचार्य श्रीक्षेमकीर्तिए वि. सं. १३३२ मां पूर्ण करी छ । २ " आगमदुर्गमपदसंशयादितापो विलीयते विदुषाम् । यद्वचनचन्दनर सैमलयगिरिः स जयति यथायः ॥ ५ ॥ श्रीमलयगिरिप्रभवो, यां कर्तुमुपाक्रमन्त मतिमन्तः । सा कल्पशास्त्रटीका, मयाऽनुसन्धीयतेऽल्पधिया ॥ ८ ॥ ३ -चर्णिकृता चूर्णिरासूत्रिता तथापि सा निविडजडिमजम्बाल जटालानामस्मादृशां जन्तूनां न तथाविधमवबोधनिबन्धनमुपजायत इति परिभाव्य शब्दानुशासनादिविश्वविद्यामयज्योतिःपुञ्जपरमाणुघटितमूर्तिभिः श्रीमलयगिरिमुनीन्द्रपिपादैः विवरणमुपचक्रमे ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002515
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Part 06
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorChaturvijay, Punyavijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year2002
Total Pages424
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bruhatkalpa
File Size20 MB
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