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________________ बृहत्कल्पसूत्रनी प्रस्तावना कोईने एम लागशे के तेओश्री माटे आचार्य तरीकेनो स्पष्ट निर्देश करवा माटे आचार्य श्रीक्षेमकीत्ति जेवाए ज्यारे उपेक्षा करी छे तो तेओश्री वास्तविक रोते आचार्यपदविभूषित हशे के केम ? अने अमने पण ए माटे तर्क-वितर्क थता हता । परंतु तपास करतां अमने एक एवं प्रमाण जडी गयुं के जेथी तेओश्रीना आचार्य पदविभूषित होवा माटे वीजा कोई प्रमाणनी आवश्यकता ज रहे नहि । ए प्रमाण खुद श्रीमलयगिरिविरचित स्वोपज्ञशब्दानुशासनमांनुं छे, जेनो उल्लेख अहीं करवामां आवे छे “ एवं कृतमङ्गलरक्षाविधानः परिपूर्णमल्पग्रन्थं लघूपाय आचार्यो मलयगिरिः शब्दानुशासनमारभते । 19 ४७ आ उल्लेख जोया पछी कोइने पण ते ओश्रीना आचार्यपणा विषे शंका रहेशे नहि । श्रीमलयगिरिरि अने आचार्य श्रीहेमचन्द्रनो सम्बन्ध — उपर आपणे जोई आव्या छीए के श्रीमलयगिरिसूरि अने भगवान् श्रीहेमचन्द्राचार्य विद्याभ्यासने विकसाववा माटे तेमज मंत्रविद्यानी साधना माटे साथ रहेता हता अने साथै विहारादि पण करता हता । आ उपरथी तेओ परस्पर अति निकट सम्बन्ध धरावता हता, ते छतां ए संबंध केटली हद सुधीनो हतो अने तेणे केवुं रूप लीधुं हतुं ए जाणवा माटे आचार्य श्रीमलयगिरि पोतानी आवश्यकवृत्तिमां भगवान् श्रीहेमचन्द्रनी कृतिमांनुं एक प्रमाण टांकतां तेओश्री माटे जे प्रकारनो बहुमानभर्यो उल्लेख कर्यो छे ते आपणे जोइए । आचार्य श्रीमलयगिरिनो ए उल्लेख आ प्रमाणे छे " तथा चाहुः स्तुतिषु गुरवः अन्योन्यपक्षप्रतिपक्षभावाद्, यथा परे मत्सरिणः प्रवादाः । नयानशेषानविशेषमिच्छन्, न पक्षपाती समयस्तथा ते 11 Jain Education International "" हेमचन्द्रकृत अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका श्लोक ३० ॥ आ उल्लेखमां श्रीमलयगिरिए भगवान् श्रीहेमचन्द्रनो निर्देश "गुरवः " एवा अति बहुमानभय शब्दथी कर्यो छे । आ उपरथी भगवान् श्रीहेमचन्द्रना पाण्डित्य, प्रभाव अने गुणोनी छाप श्रीमलयगिरि जेवा समर्थ महापुरुष पर केटली ऊंडी पडी हती एनी कल्पना आपणे सहेजे करी शकीए छीए । साथे साथे आपणे ए पण अनुमान करी शकीए के - श्रीमलयगिरि श्रीहेमचन्द्रसूरि करतां वयमां भले नाना मोटा होय, परंतु व्रतपर्याय मां तो तेओ श्रीहेमचन्द्र करतां नाना ज हता । नहि तो तेओ श्रीहेमचन्द्राचार्य माटे गमे तेलां गौरवतासूचक विशेषणो लखे पण 35 गुरवः एम तो न ज लखे । मलयगिरिनी ग्रन्थरचना - आचार्य श्रीमलयगिरिए केटला ग्रन्थो रच्या हता ए विपेनो स्पष्ट उल्लेख क्यांय जोवामां नथी आवतो | तेम छतां मळे छे, तेमज जे ग्रन्थोनां नामोनो उल्लेख तेमनी कृतिमां मळता नथी, ए बधायनी यथाप्राप्त नोंध आ नीचे आपवामां आवे छे । 66 तेमना जे ग्रन्थो अत्यारे मळवा छतां अत्यारे ए For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002515
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Part 06
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorChaturvijay, Punyavijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year2002
Total Pages424
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bruhatkalpa
File Size20 MB
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