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________________ ४३ बृहत्कल्पसूत्रनी प्रस्तावना सीहो चेव सुदाढो, जं रायगिहम्मि कविलबड्डुओ ति । सीसइ यवहारे गोयमोवसमिओ स णिक्खंतो ॥ ३४ ॥ आ बे गाथा पैकी बीजी गाथामा व्यवहारना नामनो उल्लेख को छे, ए विषय व्यवहारसूत्रना छट्ठा उद्देशाना भाष्यमां सीहो तिविट्ट निहतो, भमिउं रायगिह कवलिबडुग ति । जिणवर कहणमणुवसम, गोयमोवसम दिक्खा य ।। १९२ ॥ आ प्रमाणे आवे छे. आ उपरथी : श्रीजिनभद्रगणि करतां व्यवहारभाष्यकार पूर्ववर्ती छे' एमां लेश पण शंकाने स्थान नथी. आ उपरांत बीजं ए पण कारण आपी शकाय के-भगवान् श्रीजिनभद्रनी महाभाष्यकार तरीकेनी प्रसिद्धि छे ए तेमना पूर्ववर्ती भाष्यकार अथवा लघुभाष्यकार आचार्योने ज आभारी होय. ___ आजे जैन आगमो उपर नीचे जणाव्या प्रमाणेना भाष्यग्रन्थो जोवामां तेमज सांभळवामां आव्या छे. १-२ कल्पलघुभाष्य तथा कल्पबृहद्भाष्य, ३ महत् पंचकल्पभाष्य, ४-५ व्यवहार. लघुभाष्य तथा व्यवहारबृहद्भाष्य, ६-७ निशीथलघुभाष्य तथा निशीथबृहद्भाध्य, ८ विशेषावश्यकमहाभाष्य, ९-१० आवश्यकसूत्र लघुभाप्य तथा महाभाष्य, ११ ओघनिर्यु. क्तिभाष्य १२ दशवैकालिकभाष्य, १३ पिंडनियुक्तिभाष्य. आ प्रमाणे एकंदर बार भाष्यग्रंथो अत्यारे सांभळवामां आव्या छे. ते पैकी कल्पबृहद्भाष्य आजे अपूर्ण ज अर्थात् बीजा उद्देश अपूर्ण पर्यंत मळे छे. व्यवहार अने निशीथ उपरना बृहद्भाष्य ग्रंथो क्यांय जोवामां आव्या नथी. ते सिवायनां बधांय भाष्यो आजे उपलब्ध थाय छे जे पैकी महत्पंचकल्पभाष्य, व्यवहारलघुभाष्य अने निशीथ लघुभाष्य बाद करतां बांय भाप्यो छपाई चूक्यां छे. अहीं आपेली भाष्योनां नामोनी नोंध पैकी फक्त कल्पलघुमाष्य, महत् पंचकल्पभाष्य अने विशेषावश्यक महाभाष्यना प्रणेताने ज आपणे जाणीए छीए. ते सिवायना भाष्यकारो कोण हता ए वात तो अत्यारे अंधारामां ज पडी छे. आम छतां जो के मारा पासे कशुं य प्रमाण नथी. छतां एम लागे छे के कल्प, व्यवहार अने निशीथ लघुभायना प्रणेता श्रीसंघदासगणि क्षमाश्रमण होय तेवो ज संभव वधारे छे. कल्पलघुभाष्य अने निशीथलघुभाष्य ए वेमांनी भाष्यगाथाओगें अति साम्यपणुं आपणने आ बन्ने य भाष्यकारो एक होवानी मान्यता तरफ ज दोरी जाय छ । अंतमां भाष्यकारने लगतुं वक्तव्य पूर्ण करवा पहेला एक वात तरफ विद्वानोनुं लक्ष्य दोरवु उचित छे के-प्रस्तुत बृहत्कल्पलघुभाष्यना प्रथम उद्देशनी समाप्तिमां भाष्यकारे" उदिण्णजोहाउलसिद्धसेणो, स पत्थिवो णिज्जियसत्तुसेणो ।" (गाथा ३२८९) आ गाथामां, के जे आग्र्यु प्रकरण अने आ गाथा निशीथलघुभाष्य सोळमा उद्देशामां Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002515
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Part 06
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorChaturvijay, Punyavijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year2002
Total Pages424
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bruhatkalpa
File Size20 MB
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