________________
४१
बृहत्कल्पसूत्रनी प्रस्तावना प्रधान छे ते ज होवा जोईए. एओश्री विक्रमना पांचमा सैकाना पूर्वार्धमा विद्यमान हता. एमणे रचेल गोविंदनियुक्तिने लक्षीने ज पाक्षिकसूत्र तथा नंदीसूत्रमा नियुक्तिनो उल्लेख करायो छे एम मानवू मने वधारे संगत लागे छे. मारुं आ वक्तव्य जो वास्तविक होय तो पाक्षिकसूत्र अने नंदीसूत्रमा थएल नियुक्तिना उल्लेखने लगता प्रश्ननुं समाधान स्वयमेव थई जाय छे. _____ अंतमां अमे अमारु प्रस्तुत वक्तव्य समाप्त करवा पहेलां ढूंकमां एटलुं ज जणावीए छीए के छेदसूत्रकार अने नियुक्तिकार स्थविरो भिन्न होवा माटेना तेमज भद्रबाहुस्वामी अनेक थवा माटेना स्पष्ट उल्लेखो भले न मळता हो, ते छतां आजे आपणा सामे जे प्राचीन प्रमाणो अने उल्लेखो विद्यमान छे ते उपरथी एटलुं चोकस जणाय छे के-छेदसूत्रकार स्थविर अने नियुक्तिकार स्थविर एक नथी पण जुदा जुदा ज महापुरुषो छे. आ वात निर्णीत छतां छेदसूत्रकार अने नियुक्तिकार ए बन्नेयना एककर्तृत्वनी भ्रान्ति समान नाममाथी जन्मी होय, अने एवो संभव पण वधारे छे एटले आजे अनेकानेक विद्वानो आ अनुमान अने मान्यता तरफ सहेजे ज दोराय छे के-छेदसूत्रकार पण भद्रबाहुस्वामी छे अने नियुक्तिकार पण भद्रबाहुस्वामी छे. छेदसूत्रकार भद्रबाहु चतुर्दशपूर्वधर छे अने नियुक्तिकार भद्रबाहु नैमेत्तिक आचार्य छे. अमे पण अमारा प्रस्तुत लेखमां आ ज मान्यताने सप्रमाण पुरवार करवा सविशेष प्रयत्न कर्यो छे.
भाष्यकार श्रीसंघदासगणि क्षमाश्रमण. प्रस्तुत कल्पभाष्यना प्रणेता श्रीसंघदासगणि क्षमाश्रमण छे. संघदासगणि नामना बे आचार्यो थया छे. एक वसुदेवहिंडि-प्रथम खंडना प्रणेता अने बीजा प्रस्तुत कल्पलधुभाष्य अने पंचकल्पभाष्यना प्रणेता. आ बन्नेय आचार्यो एक नथी पण जुदा जुदा छे, कारण के वसुदेवहिंडि-मध्यमखंडना कर्ता आचार्य श्रीधर्मसेनगणि महत्तरना कथनानुसार वसुदेवहिंडि -प्रथम खंडना प्रणेता श्रीसंघदासगणि, 'वाचक' पदालंकृत हता ज्यारे कल्पभाष्यप्रणेता संघदासगणि 'क्षमाश्रमण ' पदविभूपित छे. उपरोक्त बन्नेय संघदासगणिने लगती खास विशेष हकीकत स्वतंत्र रीते क्यांय जोवामां नथी आवती एटले तेमना अंगेनो परिचय आपवानी वातने आपणे गौण करीए तो पण बन्नेय जुदा छे के नहि तेमज भाष्यकार अथवा महाभाष्यकार तरीके ओळखाता भगवान् श्रीजिनभद्रगणि क्षमाश्रमण करतां पूर्ववर्ती छे के तेमना पछी थएला छे ए प्रश्नो तो सहज रीते उत्पन्न थाय छे. भगवान् श्रीजिनभद्रगणिए तेमना विशेषणवती ग्रंथमां वसुदेवहिंडि ग्रंथना नामनो उल्लेख अनेक वार कर्यो छे एटलं ज नहि किन्तु बसुदेव हिंडि-प्रथम खंडमां आवता ऋषभदेवचरित्रनी संग्रहणी
१ सुव्वइ य किर वसुदेवेणं वाससतं परिभमंतेणं इमम्मि भरहे विजाहरिंदणरवतिवाणरकुलवंससंभवाणं कण्णाणं सतं परिणीतं, तत्य व सामा-विययमादियाणं रोहिणीपज्जवसाणाणं गुणतीस लंभता संघदासवायएणं उणिवद्धा
वसुदेवहिंडी मध्यमखंड उपोद्धात ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org