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बृहत्कल्पसूत्रनी प्रस्तावना नियुक्तिकार भद्रबाहु ए विक्रमनी छठी सदीमां थएल ज्योतिर्विद् वराहमिहिरना सहोदर होई नियुक्तिग्रंथोनी रचता विक्रमना छट्ठा सैकामां थई छे ए निर्णय कर्या पछी अमारा सामे एक प्रश्न उपस्थित थाय छ के-पाक्षिकसूत्रमा सूत्रकीर्तनन। प्रत्येक आलापकमां अने नंदीसूत्रमा अंगप्रविष्ट श्रुतज्ञानना निरूपणमां नीचे प्रमाणेना पाठो छ---
" ससुत्ते सअत्थे सगंथे सनिज्जुत्तिए ससंगहणिए " पाक्षिकसूत्र. ___“ संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ संखेज्जाओ संगहणीओ" नंदीसूत्र. अहीं आ बन्ने य सूत्रपाठो आपवानो आशय ए छे के-आ बन्ने य सूत्रो, जेनी रचना विक्रमना छट्ठा सैकाना आरंभमां ज अथवा पांचमी शताब्दिना उत्तरार्धमा थई चूकवानो संभव वधारे छे, तेमां नियुक्तिनो उल्लेख थएलो छे. उपर जणाववामां आव्युं छे तेम जो नियुक्तिकार विक्रमना छठा सैकाना पहेला चरण के वीजा चरण लगभग थया होय तो ते पहेलां गूंथाएल आ बन्ने य सूत्रोमा नियुक्तिनो उल्लेख केम थयो छे ? ए प्रश्ननुं समाधान नीचे प्रमाणे थई शके छे
पाक्षिकसूत्र अने नंदीसूत्रमा नियुक्तिनो जे उल्लेख करवामां आव्यो छे ए अत्यारे आपणा सामे वर्तमान दश शास्त्रनी नियुक्तिने लक्षीने नहि किन्तु गोविंदनियुक्ति आदिने ध्यानमा राखीने करवामां आव्यो छे.
नियुक्तिकार, स्थविर भद्रबाहुस्वामी थयानी वात सर्वत्र प्रसिद्ध छे परंतु एमना सिवाय बीजा कोई नियुक्तिकार थयानी वातने कोई विरल व्यक्तिओ ज जाणती हशे. निशीथचूर्णिना ११ मा उद्देशामां' ज्ञानस्तेन' नुं स्वरूप वर्णवतां भाष्यकारे जणाव्युं छे के"गोविंदजो नाणे-अर्थात्-ज्ञाननी चोरी करनार गोविंदाचार्य जाणवा." आ गाथानी चूर्णिमां चूर्णिकारे गोविंदाचार्यने लगता एक विशिष्ट प्रसंगनी ढूंक नोंध लीधी छे, त्यां लख्यु छे के-“ तेमणे एकेंद्रिय जीवने सिद्ध करनार गोविंदनियुक्तिनी रचना करी हती." आ उल्लेखने आधारे स्पष्ट रीते जाणी शकाय छे के-एक वखतना बौद्ध भिक्षु अने पाछळथी प्रतिबोध पामी जैन दीक्षा स्वीकारनार गोविंदाचार्य नामना स्थविर नियुक्तिकार थई गया छे. तेओश्रीए कया आगम उपर नियुक्तिनी रचना करी हशे ए जाणवा माटेनें आपणा सामे स्पष्ट प्रमाण के साधन विद्यमान नथी; तेम छतां चूर्णिकारना उल्लेखना औचित्यने ध्यानभां लेता श्रीमान् गोविंदाचार्य बीजा कोई आगम ग्रंथ उपर नियुक्तिनी रचना करी हो या गमे तेम हो, ते छतां आचारांगसूत्र उपर खास करी तेना शस्त्रपरिज्ञानामक प्रथम अध्ययन उपर तेमणे नियुक्ति रची होवी जोईए. शस्त्रपरिज्ञा अध्ययनमा मुख्यतया पांच स्थावरो--एकेंद्रिय जीवोनुं अने त्रस जीवोनु ज निरूपण छे. अत्यारे आपणा समक्ष गोविंदाचार्यकृत गोविंदनियुक्ति ग्रंथ नथी तेमज निशीथभाष्य, निशीथचूर्णि, कल्पचर्णि आदिमा आवता गोविंदनिज्जुत्ति एटला सामान्य नामनिर्देश सिवाय कोई पण चूर्णि आदि प्राचीन ग्रंथोमा ए नियुक्तिमांनी गाथादिनो प्रमाण तरीके उल्लेख थएलो जोवामां नथी
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