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________________ ३५ बृहत्कल्पसूत्रनी प्रस्तावना ___ अहीं कोईए एम कहेवान साहस न कर, के-" आ गाथा भाष्यकारनी अथवा प्रक्षिप्त गाथा हशे " कारण के-खुद चूर्णिकारे ज आ गाथाने नियुक्तिगाथा तरीके जणावी छे. आ स्थळे सौनी जाणखातर अमे चूर्णिना ए पाठने आपीए छीए चर्णि-तं पुण मंगलं नामादि चतुर्विधं आवस्सगाणुकमेण परूवेयव्वं । तत्थ भावमंगलं निजृत्तिकारो आह-बंदामि भहबाहुं, पाईणं चरिमसगलसुयणाणिं । सुत्तस्स कारगमिसिं, दसासु कप्पे य ववहारे ॥ १ ॥ चूर्णि:-भद्दवाहू नामेणं । पाईणो गोत्तेणं । चरिमो अपच्छिमो । सगलाई चोदसपुव्वाइं। किंनिमित्तं नमोकारो तस्स कजति ? उच्यते-जेण सुत्तस्स कारओ ण अत्थस्स, अत्थो तित्थगरातो पसूतो । जेण भण्णति-अत्थं भासति अरहा० गाथा। कतरं सुत्तं ? दसाओ कप्पो ववहारो य । कतरातो उद्धृतम् ? उच्यते-पञ्चक्खाणपुवातो । अहवा भावमंगलं नन्दी, सा तहेव चउव्विहा ।। -दशाश्रुतस्कंधनियुक्ति अने चूर्णि ( लिखित प्रति ) अहीं अमे चूर्णिनो जे पाठ आप्यो छे एमां चूर्णिकारे " भावमंगल नियुक्तिकार कहे छे” एम लखीने ज " वंदामि भद्दबाहुं " ए मंगलगाथा आपी छे एटले कोईने बीजी कल्पना करवाने अवकाश रहेतो नथी. ____ भगवान् भद्रबाहुनी कृतिरूप छेदसूत्रोमां दशाश्रुतस्कंधसूत्र सौथी पहेलं होई तेनी नियुक्तिना प्रारंभमां तेमने नमस्कार करवामां आव्यो छे ए छेदसूत्रोना प्रणेता तरीके अत्यंत औचित्यपात्र ज छे. ____ जो चर्णिकार, निर्यक्तिकार तरीके चतुर्दशपूर्वधर स्थविर आर्य भद्रबाहुने मानता होत, तो तेओश्रीने आ गाथाने नियुक्तिगाथा तरीके जणाववा पहेलां मनमा अनेक विकल्पो ऊठ्या होत. एटले ए वात निर्विवादपणे स्पष्ट थाय छे के-" चतुर्दशपूर्वधर भद्रबाहुस्वामी नियुक्तिकार नथी" अमने तो लागे छे के नियुक्तिकारना विषयमा उद्भवेलो गोटाळो चूर्णिकारना जमाना पछीनो अने ते नामनी समानतामांथी जन्मेलो छे. ___ उपर अमे प्रमाणपुरःसर चर्चा करी आव्या ते कारणसर अमारी ए दृढ मान्यता छे के-आजना नियुक्तिग्रंथो नथी चतुर्दशपूर्वधर स्थविर आर्य भद्रवाहुस्वामीना रचेला के नथी ए, अनुयोगपृथक्त्वकार स्थविर आयरक्षितना युगमा व्यवस्थित कराएल; परंतु आजना आपणा नियुक्तिग्रंथो उपराउपरी पडता भयंकर दुकाळो अने श्रमणवर्गनी यादशक्तिनी खामीने कारणे खंडित थएल आगमोनी स्थविर आर्यस्कंदिल, स्थविर नागार्जुन आदि स्थविरोए पुनःसंकलना अथवा व्यवस्था करी तेने अनुसरता होई ते पछीना छे. उपर अमे जणावी आव्या ते मुजब आजना आपणा नियुक्तिप्रन्थो चतुर्दशपूर्वविद् स्थविर आर्य भद्रबाहुस्वामिकृत नथी-न होय, तो एक प्रश्न सहेजे ज उपस्थित थाय छे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002515
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Part 06
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorChaturvijay, Punyavijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year2002
Total Pages424
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bruhatkalpa
File Size20 MB
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