________________
ग्रंथकारोनो परिचय आ समाधानने चूर्णकारनो टेको पण नथी. ज्यारे कोइ पण स्थळे विरोध जेवु आवे त्यारे तेने स्वेच्छाथी " भाष्यगाथा छ” इत्यादि कही निराधार समाधान आपवाथी काम चाली शके नहि. एटले पूज्य श्री शान्ति सूरिजीनुं उपरोक्त वैकल्पिक समाधान,-जेना माटे खुद पोते पण शंकित छ,-मान्य राखी शकाय नहि.
२. सूत्रकृतांगसूत्रना बीजा श्रुतस्कंधना पहेला पुंडरीकाध्ययनमा — पुंडरीक ' पदना निक्षेपोर्नु निरूपण करतां द्रव्यनिक्षेपना जे त्रण आदेशोनो नियुक्तिकारे संग्रह को छे ए बृहत्कल्पसूत्रचूर्णिकारना कहेवा प्रमाणे स्थविर आयमंगु, स्थविर आर्यसमुद्र अने स्थविर आर्यसुहस्ती ए त्रण स्थविरोनी जुदी जुदी त्रण मान्यतारूप छे. चूर्णिकारे जणावेल वात साची होय,-बाधित होवा माटेगें कोई प्रमाण नथी,-तो आपणे एम मानवं जोईए के चतुर्दशपूर्व विद् भद्रबाहुकृत नियुक्तिपंथोमा तेमना पछी थएल स्थविरोना आदेशोनो अर्थात् एमनी मान्यताओनो उल्लेख होई ज न शके. अने जो ए स्थविरोना मतोनो संग्रह नियुक्तिग्रंथोंमां होय तो 'ए कृति चतुर्दशपूर्वधर भद्रबाहुनी नथी पण कोई बीजा ज स्थविरनी छे' एम कहे, जोईए. जो पाछळथएल स्थविरोनी कहेवाती, मान्यताओनो संग्रह चतुर्दशपू. र्वधरनी कृतिमा होय तो ए मान्यताओ आर्यमंगु आदि स्थविरोनी कहेवाय ज नहि. जो कोई आ प्रमाणे प्रयत्न करे तो ए सामे विरोध ज ऊभो थाय. अन्तु, नियुक्तिमा पाछळना स्थविरोना उपरोक्त द्रव्यनिक्षेपना त्रण आदेशो जोतां नियुक्तिकार चतुर्दशपूर्वधर भद्रबाहुस्वामी होवानी मान्यता बाधित थाय छे.
३. उपर अमे जे वे प्रमाण टांकी आव्या ते करतां त्रीजुं प्रमाण वधारे सबळ छे अने ए दशाश्रुतस्कंधनी नियुक्तिनुं छे. दशाश्रुतस्कंधनी नियुक्तिना प्रारंभमां नीचे प्रमाणे गाथा छे
वंदामि भद्दबाहुं, पाईणं चरिमसगलसुयनाणिं ।
सुत्तस्स कारगमिसिं, दसासु कप्पे य ववहारे ॥ १ ॥ ___ दशाश्रुतस्कंधनियुक्तिना आरंभमां छेदसूत्रकार चतुर्दशपूर्वधर स्थविर भद्रबाहुने उपर प्रमाणे नमस्कार करवामां आवे ए उपरथी सौ कोई समजी शके तेम छ के-" नियुक्तिकार चतुर्दश पूर्वधर भद्रबाहुस्वामी होय तो पोते पोताने आ रीते नमस्कार न ज करे.' एटले आ उपरथी अर्थात ज एम सिद्ध थाय छे के-नियुक्तिकार चतुर्दशपूर्वधर भद्रबाहुस्वामी नथी पण कोई वीजी ज व्यक्ति छे.
१. गणहरथेरकयं वा, आएसा मुकवागरणतो वा ।
धुवच लक्सेिसतो वा, अंगाऽणंगेसु णाणत्तं ॥ १४४ ॥ चूर्णि:- किं च आएसा जहा अजमंगू तिविहं संखं इच्छति-एगभवियं बद्धाउयं अभिमुहनामगोत्तं च । अजसमुद्दा दुनिहं-बद्धाउयं अभिमुहनामगोनं च । अन्जनहत्थी एग-अभिभुनामगोयं इच्छति ॥
कल्पभाग्यगाथा अने चूर्णि ( लिखित प्रति )
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org