SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 35
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३२ ग्रंथकारोनो परिचय अथवा ए आगमोनी वाचना चालु कर्या आदिने लगता विविध उल्लेखो मळे छे, तेम नियुक्ति. ग्रन्थोने व्यवस्थित करवाने लगतो एक पण उल्लेख मळतो नथी; तेम छतां उपरोक्त समाधानने आपणे कबूल करी लईए तो पण ए समाधान सामे एक विरोध तो ऊभो ज छे के स्थविर आयरक्षितना जमानामां आचारांग अने सूत्रकृतांग ए बे अंगआगमोनुं प्रमाण ते ज हतुं जे चतुर्दशपूर्वधर स्थविर आर्य भद्रबाहुस्वामीना जमानामा हतुं, एटले ए नियुकिग्रंथो चार अनुयोगमय होवाने बदले भले एक अनुयोगानुसारी हो, परंतु ए नियुक्तिग्रंथोनुं प्रमाण तो सूत्रग्रंथोनी विशाळताने अनुसरी विशाळ ज होवू जोईए; पण तेम नहोता आपणा सामे विद्यमान नियुक्तिग्रन्थो माथुरी आदि वाचनाओ द्वारा अतिसंस्कार पामेल अने जैन साम्प्रदायिक मान्यतानुसार अति ढूंकाई गएल अंतिम सूत्रसंकलनाने ज आबाद अनुसरे छे. अनुयोगनी पृथक्ता आदिने लगती बाबतो विषे कदाच एम कहेवामां आवे के"ए उल्लेखो स्थविर आर्य रक्षिते निर्यक्तिग्रंथोनी पुनर्व्यवस्था करी त्यारे उमेरेल छे" तो पण नियुक्तिग्रन्थोमां गोष्ठामाहिल निह्नव अने दिगंबरमतनी उत्पत्तिने लगती हकीकत नियुक्तियन्थमा क्याथी आवी ? के जे बन्नेयनी उत्पत्ति स्थविर श्रीआर्यरक्षित भगवानना स्वर्गवास पछी थएल छे. आ बाबतने उमेरनार कोई त्रीजा ज स्थविरने शोधवा जवू पडे एवं छे. वस्तुतः विचार करवामां आवे तो कोई पण स्थविर महर्षि प्राचीन आचार्यना ग्रंथने अनिवार्य रीते व्यवस्थित करवानी आवश्यकता ऊभी थतां तेमां संबंध जोडवा पुरतो घटतो उमेरो के सहज फेरफार करे ए सह्य होई शके, पण तेने बदले ते मूळ ग्रंथकारना जमा. नाओ पछी बनेली घटनाओने के तेवी कोई बीजी बावतोने मूळ ग्रंथमां नवेसर पेसाडी दे एथी ए ग्रंथ, मौलिकपणुं, गौरव के प्रामाणिकता जळवाय खरां ? आपणे निर्विवादपणे कबूल करवू जोईए के मूळ ग्रंथमां एवो नवो उमेरो क्यारे य पण वास्तविक तेमज मान्य न करी शकाय. कोई पण स्थविर महर्षि अणघटतो उमेरो मूळ ग्रंथमां न ज करे अने जो कोई करे तो तेवा उमेराने ते ज जमानाना स्थविरो मंजूर न ज राखे. अने तेम बने तो तेनी मौलिकतामां जरूर ऊणप आवे. अही प्रसंगवशात् एक वात स्पष्ट करी लईए के, चतुर्दशपूर्वधर भगवान् भद्रबाहुना जमानाना नियुक्तिग्रंथोने आर्यरक्षितना युगमा व्यवस्थित कराय अने आर्यरक्षितना युगमां व्यवस्थित कराएल नियुक्तिग्रंथोने ते पछीना जमानामां व्यवस्थित करवामां आवे, एटलं ज नहि पण ए नियुक्तिग्रंथोमां उत्तरोत्तर गाडां ने गाडां भरीने वधारो घटाडो करवामां आवे, आ जातनी कल्पनाओ जराय युक्तिसंगत नथी. कोई पण मौलिक ग्रंथमां आवा फेरफारो कर्या पछी ए ग्रंथने मूळ पुरुषना नामथी प्रसिद्ध करवामां खरे ज एना प्रणेता मूळ पुरुषनी तेमज ते पछीना स्थविरोनी प्रामाणिकता दूषित ज थाय छे. उपर जणाववामां आव्युं ते सिवाय निर्यक्तिग्रन्थोमां व्रण वाबतो एवी छे के जे निर्यक्तिकार चतुर्दशपूर्वधर होवानी मान्यता धरावतां आपणने अटकावे छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002515
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Part 06
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorChaturvijay, Punyavijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year2002
Total Pages424
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bruhatkalpa
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy