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आमुख वीरवरस्स भगवओ तित्थे कोडीगणे सुविपुलम्मि । गुणगणवइराभस्सा वेरसामिस्स साहाए ॥ १॥ महरिसिसरिससभावा भावाऽभावाण मुणितपरमत्था । रिसिगुत्तखमासमणो( णा ? )खमासमाणं णिधी आसि ॥२॥ तेसिं सीसेण इमा कलसभवमइंदणामधेजेण ।
दसकालियस्स चुण्णी पयाण रयणातो उवण्णत्था ।। ३ ॥ प्रस्तुत प्रशस्ति जोता अने स्थविर अगस्त्य सिंह, भगवान् श्रीवत्रस्वामिनी शाखामां थएल होई ओछामा ओछु बीजी त्रीजी पेढीए थएला होवानो संभव होवाथी, तेम न तेमणे पोतानी चूमिां प्राचीन वृत्तिनो उल्लेख करेलो होई विक्रमनी त्रीजी सदीमां तेमर्नु होवू अने चूर्णीनुं रचवू संगत लागे छे. ___ उपर जणाव्या मुजर आजे आपणा सामे प्राचीन कोई पण विवरण, वृत्ति के व्याख्याग्रंथ नथी, तेम छतां प्रस्तुत अगस्त्यसिंहकृत चूर्णि के जे आजे उपलब्ध थता गद्यव्याख्याग्रंथोमां सौथी प्राचीन होवा उपरांत स्थविर श्रीदेवर्द्धिगणि क्षमाश्रमणनी आगमव्यवस्था अने ग्रंथलेखन पूर्वे रचाएल छे तेमां नियुक्तिपंथने समावीने व्याख्या करवामां आवी छे, एटले मारी प्रस्तावनामां में नियुक्तिरचनानो समय विक्रमनो छटो सैको होवानी जे संभावना करी छे तथा ते साथे वल्लभीवाचनाना सूत्रव्यवस्थापन थया बाद नियुक्तिओ रचावानी संभावना करी छे, ए बन्नेय विधानो बराबर नथी, परंतु नियुक्तिओनी रचना विक्रमना बीजा सैका पूर्वेनी छे ।
प्राचीन काळथी जे एक प्रवाह चाले छे के नियुक्तिकार चतुर्दशपूर्वधर स्थविर आर्य भद्रबाहुस्वामी छे ' एनो खरो अर्थ अत्यारे घराबर समजातो नथी, तेम छतां संभव छे के तेमणे कोई विशिष्ट नियुक्तिओनु संकलन कयु होय जेना अमुक अंशो वर्तमान नियुक्तिग्रंथोमा समावी लेवामां आव्या होय ! । आजे आपणा सामे जे नियुक्तिओ छे तेमां तो उत्तरोत्तर वधारो थतो रह्यो होई एना मौलिक स्वरूपने नक्की करवानुं कार्यअतिदुष्कर छे अने एना प्रणेता के व्यवस्थापकनुं नाम नक्की करवु ए पण अति अघरं काम छे। आपणा वर्तमान नियुक्तिग्रंथोमां पाछळथी केटलो उमेरो थयो छे, ए जाणवा माटे स्थविर अगस्त्यसिंहनी चूर्णि अति महत्त्व- साधन छ । स्थविर अगस्त्यसिंहनी चूर्णिमा दशवैकालिकना प्रथम अध्ययननी नियुक्तिगाथाओ मात्र चोपन छे, ज्यारे आचार्य श्री. हरिभद्रनी टीकामा प्रथम अध्ययननी नियुक्तिगाथाओ एक सो ने छप्पन जेटली छे । आखा दशवैकालिकसूत्रनी नियुक्तिगाथानो विचार करीए तो आचार्य हरिभद्रनी टीकामां लगभग गाथासंख्या बेवडी करतां पण वधारे थई जाय । अहीं एक बात ए ध्यानमां
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