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आमुख राखवा जेवी छे के-पूज्य श्रीसागरानन्दसूरिजीए प्रसिद्ध करेली दशवैकालिक चूर्णी, के जे वल्लभीसूत्रव्यवस्थापन पछी रचाएली छे तेमां सूत्रपाठ वल्लभीवाचनासम्मत होवा छतां नियुक्तिगाथाओ अगस्त्यसिंहनी चूर्णीमा छे तेटली एटले के मात्र चोपन ज छे । आ उपरथी समजाशे के समयना वहेवा साथे नियुक्तिग्रंथोमां पाछळथी घणां घणां परि. वर्तन अने वृद्धि थयां छ । आ बधुं विचारतां जो के नियुक्तिमंथो कोना रचेला ? तेनुं मौलिक स्वरूप केवु ? वगेरे प्रश्नो अणउकल्या रहे छे, ते छतां जैन भागमो उपर नियुक्तिओ रचावानो प्रारंभ घणो प्राचीन छ । भगवान् श्रीमल्लवादीए पण पोताना नयचक्र ग्रंथमा नियुक्तिगाथाओनां उद्धरणो आपेला छे । जेमानुं उदाहरण तरीके एक उद्धरण आपवामां आवे छे ।
" एकेको य सतविधो त्ति शतसङ्कथं प्रभेदमेवम्भूतं व्याप्नोति एतल्लक्षणम् । तत्सा. क्षीभूतं तत्संवादि " नियुक्ति " लक्षणमाह-" वत्थूणं संकमणं होति अवत्थू णये समभिरूढे ।" इति । इत्यादि।
भगवान् श्रीमल्लवादिनो सत्तासमय विक्रमनी पांचमी सदी अने वल्लभी सूत्रव्यव. स्थापनवाचना पहेलांनो छ । नन्दीसूत्र वगेरे मौलिक आगमोमां पण नियुक्तिमंथनी गाथाओ होवार्नु मानवामां आवे छे ।
अंतमां एटलुंज निवेदन छ के-घणा वर्षोंने अंते एक महाशानने बनी शके तेटला व्यवस्थित स्वरूपमा विद्वान् मुनिगण आदि समक्ष हाजर करवामां आवे छे । प्रस्तुत महाशास्त्र जैन गीतार्थ स्थविरोनी महाप्रसादी छे। श्रमण वीर-वर्द्धमान परमात्माना अतिगंभीर अने अनाबाध धर्ममार्गनी सूक्ष्म सूक्ष्मतर सूक्ष्मतम व्यवस्था अने तेनी समालोचनाने रजू करतुं आ एक महाशास्त्र छ। एनुं अध्ययन सौने वीरपरमात्माना शुद्ध मार्गनुं दर्शन करावनार बनो।
लि. मुनि पुण्यविजय
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