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________________ बृहत्कल्पसूत्र तृतीय विभागनो विपयानुक्रम । माथा विषय पत्र ७७०-७४ ७७० ७७० २७३२-५८ चारप्रकृत सूत्र ३५-३६ २७३२-४७ ३५ पहेलं चारसूत्र निम्रन्थ-निर्ग्रन्थीओने चोमासामां एक गामथी वीजे गाम जदूं कल्पे नहि २७३२-३३ चारप्रकृतनो पूर्वसूत्र साथे सम्बन्ध पहेला चारसूत्रनी व्याख्या २७३४ वर्षावासना प्रावृट् अने वर्षा ए वे प्रकारो अने तेमा विहार करवाथी तेमज वर्षाऋतु पूर्ण थया पछी विहार नहि करवाथी लागतां प्रायश्चित्तो २७३५-३७ निम्रन्थ-निर्ग्रन्थीओने वर्षावासमां विहार करवाथी - लागता आज्ञा-विराधनादि दोषो २७३८-४७ निम्रन्थ-निर्ग्रन्थीओने वर्षावासमां विहार करवाने लगतां आपवादिक कारणो अने तेने अंगेनी यतनाओ २७४८-५८ ३६ बीजं चारसूत्र निम्रन्थ-निर्ग्रन्थीओने हेमंत अने प्रीष्मऋतुमा विहार करवो कल्पे २७४८ वीजा चारसूत्रनो पूर्वसूत्र साथे संबंध बीजा चारसूत्रनी व्याख्या २७४९-५० निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थीओने हेमंत-ग्रीष्मऋतुमा विहार नहि करवाथी लागता दोषो अने विहार करवाथी थता लाभो २७५१-५८ निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थीओने हेमंत-ग्रीष्मऋतुमा विहार करतां मार्गमां आवतां मासकल्पने योग्य गामनगरादि क्षेत्रोने चैत्यवन्दनादि निमित्ते छोडी देवाथी लागता दोषो अने तेने लगतुं अपवादपद ७७२-७४ ७७४-७८ ७७५ २७५९-९१ वैराज्य-विरुद्धराज्यप्रकृत सूत्र ३७ ७७८-८७ निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थीओने वैराज्य-विरुद्धराज्यमां तुरतातुरत जq आवq कल्पे नहि वैराज्य-विरुद्धराज्यप्रकृतनो पूर्वसूत्रसाथे सम्बन्ध २७५९ ७७८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002512
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Part 03
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorChaturvijay, Punyavijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year2002
Total Pages364
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bruhatkalpa
File Size19 MB
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