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________________ ३२. गाथा पत्र ७५५-५६ ७५८-५९ बृहत्कल्पसूत्र तृतीय विभागनो विषयानुक्रम । विषय २६८५-८८ निश्चय व्यवहारनयनी अपेक्षाए द्रव्योना गुरुत्व, लघुत्व, गुरुलघुत्व अने अगुरुलघुत्यनुं स्वरूप जीवो स्वाधीनपणे कर्मो करे छे छतां तेमनी उंचनीच गति स्वाधीनपणे न थतां कर्मोने आश्रीने ज थाय छे तेनुं | कारण ए शंकानुं समाधान २६९२ जीवो जे कर्मो खपावे छे ते उदीर्ण होय के अनु दीर्ण तेनुं स्वरूप २६९३-९७ १ सचित्त २ अचित्त ३ मिश्र ४ वचोगत ५ परिहार अने ६ देशकथा ए पांच द्वारो वडे भावा धिकरण उत्पन्न थवानां कारणोनुं निरूपण २६९८-२७०५ निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थीओमां परस्पर अधिकरण-क्लेश थतो होय त्यारे उपेक्षा, उपहास, उत्तेजना अने सहायपणुं करनारने प्रायश्चित्तो अने उपेक्षा उपहा सादि पदोनी व्याख्या २७०६-७ निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थीओ परस्पर अधिकरण करता होय तेनी उपेक्षा करनार अथवा तेने शान्त नहि करनार आचार्या दिने लागता दोपो अने तेने लगतुं सरोवरवासी जलचरो अने हस्तियूथनुं दृष्टान्त । २७०८-१२ निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थीओ परस्पर केश करता होय तेनी उपेक्षा करवाथी आचार्यादिने व्यवहार अने निश्च यनयनी अपेक्षाए लागता दोषोनुं स्वरूप २७१३-१७ निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थीओमां परस्पर थता अधिकरण क्लेशने शान्त करवानी रीत अने तेने लगतो उपदेश २७१८-३० निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थीओ परस्पर अधिकरण करता होय त्यारे आचार्यादिनी समजावटी एक जण शान्त थाय पण पर-वीजो शान्त न थाय त्यारे शुं करवू तेने लगतो विधि बताववाना प्रसंगमा 'पर'शब्दना नाम स्थापना द्रव्य क्षेत्र काल आदेश क्रम बहु प्रधान अने भावनिक्षेपो अने तेनुं रहस्यपूर्ण विवेचन २७३१ अधिकरण-केश करवाने लगतुं अपवादपद ७६०-६१ ७६२ ७६३ ७६४-६५ ७६६-६९ ७६९ % 3D Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002512
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Part 03
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorChaturvijay, Punyavijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year2002
Total Pages364
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bruhatkalpa
File Size19 MB
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