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________________ २८ गाथा २५४८-५० २५५१-८२ २५५१ २५५२-५५ २५५६-७७ २५७८-८२ वृहत्कल्पसूत्र तृतीय विभागनो विषयानुक्रम | विषय Jain Education International अने कुतरा साथे मैथुनप्रसंग सेवनार अगारीनुं दृष्टान्त सागारिकापाश्रयसूत्र लगतो अपवाद अने तेने अंगेनी जयणाओ २६ - २९ सागारिको पाश्रयसूत्रो निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थीविषयक विभागवार सूत्रो २६-२९ सागारिकोपाश्रयसूत्रोनो २५ मा सागारिको पाश्रय सूत्र साथै सम्बन्ध २६ - २९ सागारिकापाश्रयसूत्रोनी व्याख्या २५ मा सूत्रमां कहेली हकीकत ज २६ थी २९ सूत्रोमां कहेबानी होई आ सूत्रोनी रचना निरर्थक छे ए प्रकारनी शिष्यनी शंका अने तेनुं समाधान निर्ग्रथविषयक २६ - २७ सागारिकोपाश्रयसूत्रनी विस्तृत व्याख्या सविकार पुरुष अने पुरुषप्रकृति तेम ज स्त्रीप्रकृति नपुंसकनुं स्वरूप, तेमना १ मध्यस्थ २ आभरणप्रिय ३ कांदर्पिक अने ४ काथिक ए चार प्रकारोनुं स्वरूप, तेना भेद-प्रभेदो अने तेमना संबंधवाळा उपाश्रयोमां निष्कारण वसवाथी लागता संयमविराधनादि दोपो अने प्रायश्चित्तो तथा कारणसर सागारिका संबंधवाळा उपाश्रयोमां रहेवुं पडे तेने लगती जयणाओ अने अपवादो निर्ग्रन्थीविषयक २८-२९ सारिक सूत्रो व्याख्यानी निर्ग्रन्थसूत्रोनी व्याख्यानी जेम भलामण २५८३ - २६२८ प्रतिबद्धशय्याप्रकृत सूत्र ३०-३१ २५८३–२६१५ ३० पहेलुं प्रतिबद्धशय्यासूत्र जे उपाश्रयनी नजीकमां गृहस्थो रहेता होय त्यां निर्मन्थोने रहे कल्पे नहि For Private & Personal Use Only पत्र ७१८ ७१८ ७१९-२६ ७१९ ७१९ ७१९-२० ७२०-२५ ७२५-२६ ७२७-३८ ७२७-३५ www.jainelibrary.org
SR No.002512
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Part 03
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorChaturvijay, Punyavijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year2002
Total Pages364
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bruhatkalpa
File Size19 MB
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