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बृहत्कल्पसूत्र तृतीय विभागनो विषयानुक्रम ।
गाथा
विषय
पत्र
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६७७
६७७-८५
६७७
६७८-८१
आदि आहार करवो, स्वाध्याय-ध्यान-काउसग
वगेरे कशुं य करवू कल्पे नहि २३८३ दकतीरप्रकृतनो पूर्वसूत्र साथे सम्बन्ध
१९ दकतीरसूत्रनी व्याख्या २३८४ दकतीरसूत्रनी विस्तृत व्याख्यामाटे द्वारगाथा २३८५-२४१२ १दकतीरद्वार २३८५-८६ 'दकतीर क्यां सुधी कहेवाय ?' तेने लगता सात
आदेशो-मतो अने ते पैकीना प्रामाणिक मतोनो
निर्णय २३८७ पाणीना किनारे ऊभा रहेQ, बेस, सुq, स्वाध्याय
ध्यान वगैरे करवाथी लागता अधिकरणादि दोषो २३८८-९८ अधिकरणदोषनुं स्वरूप
जलाशय वगेरेना नजीकमां श्रमण-श्रमणीओने ऊभेला, वेठेला, सुतेला, स्वाध्याय-ध्यान-काउसग वगैरे करता जोई स्त्री, पुरुष, पशु, जंगली माणसो, जंगली पशु वगेरे तरफथी उत्पन्न थता अधिक
रणदोषनुं स्वरूप २३९९ पाणीनी नजीकमां ऊभा रहेg, बेस, वगेरे दश
स्थानोने लगतुं सामान्य प्रायश्चित्त २४०० निद्रा निद्रानिद्रा प्रचला प्रचलाप्रचलानुं स्वरूप २४०१-१२ संपातिम तथा असंपातिम एम वे प्रकारना पाणीना
किनारे बेस, वगेरे दश स्थान सेवनार आचार्य, उपाध्याय, भिक्षु, स्थविर, क्षुल्लक ए पांच निर्ग्रन्थ अने प्रवर्तिनी, अभिषेका, भिक्षुणी, स्थविरा, क्षुल्लिका ए पांच निर्ग्रन्थीओने लक्षीने प्रायश्चित्तना विविध आदेशो [गाथा २४०२-सम्पातिम असम्पातिम दकती
रनुं स्वरूप] २४१३-१५ २ यूपकद्वार
यूपकनुं स्वरूप अने तेने लगतां प्रायश्चित्तो
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६८२-८५
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