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________________ गाथा १९६३ ५७१ १९६४ ५७१-७२ १९६५-७० बृहत्कल्पसूत्र द्वितीय विभागनी विषयानुक्रम । विपय ग्लान साधुनी शरीरशुश्रूपाने लगता विधिनी भलामण ग्लानविपयक अने वैद्यविषयक अनुवर्तनाने लगता वनव्यनी विशालता वास्तव्य तेमज बहार गामी बोलावेल वैद्यने औपध आदिनुं मूल्य आपवा-अपाववाना विशिष्ट प्रकारो [गाथा १९६५-ऋयिकनुं दृष्टान्त ] ग्लानने तेमज तेनी सेवा करनारने अपवाद सेववा आदि कारणे प्रायश्चित्त ग्लानविषयक तेमज वैद्यविषयक अनुवर्त्तनानो उपसंहार ५७२-७४ १९७१ ५७४ १९७२ पू० ५७५-७७ ५७७-७८ १९७२ उ०-८० ९-१० चालनाद्वार अने संक्रामणद्वार ग्लान साधुने स्थानांतरमा लइ जवानां कारणो तथा एक वीजा समुदायना ग्लान साधुनी सेवामाटे फेर बदली १९८१-८८ ग्लान साधुनी उपेक्षा करनार साधुओने ग्लाननी सेवा करवामाटे शिखामण नहि आपनार आचार्यने प्रायश्चित्त १९८९-९७ जे आचार्य आदि निर्दयपणे म्लान साधुने संविग्न, असंविग्न, गीतार्थ, अगीतार्थ वगेरे जे जे जातना श्रमणोनी निश्रामा तेमज उपाश्रयमां, सेरीमां, गामनी वचमां वगेरे जुदे जुदे ठेकाणे पडता मूकी चालता थाय तेमने स्थान वगेरेने लक्षीने विधविध प्रकारनां प्रायश्चित्तो १९९८-२००१ एक गच्छ, ग्लान साधुनी सेवा केटला वखत सुधी करे अने ते पछी ते ग्लान साधुने क्या राखे-सोपे एने लगती संघ व्यवस्था २००२-१३ केवा प्रकारनां आगाढ कारणोने प्रसंगे, केटला विवेकपूर्वक, केवा प्रकारना ग्लान साधुने पडतो ५७८-७९ ५७९-८०
SR No.002511
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Part 02
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorChaturvijay, Punyavijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year2002
Total Pages400
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bruhatkalpa
File Size21 MB
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