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________________ गाथा पत्र: ३५३-४२६ ३५३-५७ ३५७-६५ बृहत्कल्पसूत्र द्वितीय विभागनो विषयानुक्रम । विषय ११३१ मासकल्प विहारीओ ११३२-१४२४ जिनकल्पिकनुं खरूप ११३२-४२ १जिनकल्पिकनी दीक्षा धर्म, धर्मोपदेशक, धर्मोपदेशने लायक भवसिद्धिकादि जीवो अने धर्मोपदेशनो विधि-क्रम अने ए क्रमना भङ्गथी थता दोष आदिनुं निरूपण [गाथा ११४१ -वीरशुनिकानुं दृष्टान्त ] ११४३-१२१८ २ जिनकल्पिकनी शिक्षा ११४३-६१. दीक्षा लेनारे संयममार्ग- आराधन जतुं करी शामाटे अभ्यास करवो ए संबंधमा आचार्य अने शिष्यनो संवाद अने एक बीजाए स्वपक्षना समर्थनमाटे आपेलां गजनान, श्लीपदी, आतुर, अन्धस्थविर (सोमिल ब्राह्मण) अने यवराजर्षिनां दृष्टान्तो अने अंतमां शास्त्राभ्यासनी आवश्यकतानुं समर्थन ११६२-७१ शास्त्राभ्यासथी थता आत्महित, परिज्ञा-वस्तुस्वरूपनी ओळख, भावसंवर-तात्त्विकत्याग, संवेग-वैराग्य, संयममार्गमां निष्कम्पता, स्वाध्यायरूप तात्त्विक तपनी वृद्धि, निर्जरा, परतारकपणुं आदि गुणो ११७२ जिनकल्पिक क्यारे होय ? ११७३-७५ स्थविर आदिने छोडी तीर्थकरनी पासे शास्त्राभ्यास माटे रहेवामा दोषो १९७६-१२१७ समवसरणनी वक्तव्यता जैन तीर्थकरोने धर्मोपदेश आपवामाटेनुं व्यासपीठ ३५७-६२ ३६२-६४ ३६४ ३६४-६५ ३६५-७७ ११७६ ११७७-९४ १९७७-८० ३६६-७१ समवसरणवक्तव्यताविषयक द्वारगाथा १ समवसरणद्वार वैमानिक, ज्योतिष्क, भवनपति, व्यंतर आदि देवो एकीसाथे एकत्र मळ्या होय त्यारे समवसरणनी जमीन साफ करवी, सुगंधी पाणी फूल आदिनो वरसाद वरसाववो, समवसरणना प्राकार, कांगरा, दरवाजा, पताका, ध्वज, तोरण, चित्र, चैत्यवृक्ष,
SR No.002511
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Part 02
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorChaturvijay, Punyavijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year2002
Total Pages400
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bruhatkalpa
File Size21 MB
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