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________________ गाथा ३३४-६१ विषय अनुयोगने लायक पर्षदनी अर्थात् शिष्योनी परीक्षा करवा माटे मुद्रशैलादि दृष्टांतो ३३५-३७ मुद्गशैल-पुष्करावर्त्तमेघनुं दृष्टांत अने मुद्गशैल जेवा शिष्यने अनुयोग आपवामां दोषो ३३८ काळी जमीननुं उदाहरण ३३९-४२ कुटनुं-घडानुं दृष्टान्त बृहत्कल्पसूत्रनी पीठिकानो विषयानुक्रम | चालणीनुं दृष्टान्त ३४३–४५ मुद्गशैल, काणो घडो अने चालणी समान शिष्योनो 'अनुयोग सांभळ्या पछी पोते केटलं अने क्यां सुधी याद राखी शके छे' ए अर्थने सूचवतो परस्परनो वार्त्तालाप ३४५ - ६१ परिपूणक, हंस, महिष, मेष, मशक - मच्छर, जळो, बीलाडी, जाहक, कोई यजमाने चार ब्राह्मणो वच्चे आपेली एक गाय, कृष्णनी अशिवोपशमनी भेरी, आभीरी - भरवाडणनां दृष्टांतो ३६२-६३ योग्य शिष्यने सूत्रार्थनी वाचना नहि आपवामां अने अयोग्यने आपवामां प्रायश्चित्त प्रकारान्तरे जाणकार अज्ञान अने दुर्विदग्ध एम त्रण प्रकारनी पर्षदा ३६४-७७ ३६५-६६ जाणकार पर्षदानुं स्वरूप ३६७-६८ अज्ञान पर्षदानुं स्वरूप ३६९-७२ दुर्विदग्ध पर्षदानुं स्वरूप अने त्वरितग्राही - उतावळीया दुर्वि - दग्धवैयाकरणनुं दृष्टांत ३७३-७५ भाष्यकारे पोताना जमानाना आचार्योनी परिस्थितिनुं करेलुं तटस्थ सूचन ३७६-७७ दुर्विदग्ध वैद्यपुत्रनुं दृष्टांत अने तेनो दुर्विदग्ध शिष्यो साथै उपनय ३७८ - ९९ त्रीजी रीते लौकिक लोकोत्तर एम वे प्रकारनी पर्पदा ३७९-९८ पूरयन्ती, छत्रांतिका, बुद्धि, मन्त्री अने राहस्थिकी एम पांच प्रकारनी लोकिक लोकोत्तर पर्षदा अने तेनुं वर्णन कल्प-व्यवहारना अनुयोगमाटे लोकोत्तर छत्रांतिक पर्षदानुं अधिकारिप ३९९ Jain Education International For Private & Personal Use Only २९ पत्र १०१-८ १०१ १०२ १०२ १०३ १०३ १०४-८ १०८ १०९-१२ १०९ १०९-११० ११० १११ ११२ ११२-१६ ११२-१६ ११६ www.jainelibrary.org
SR No.002510
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Part 01
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorChaturvijay, Punyavijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year2002
Total Pages296
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bruhatkalpa
File Size18 MB
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