SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 16
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १३ बृहत्कल्पसूत्र प्रथम खंडनी आव्यो छे तेम छतां सोनेरी रंगनो उपयोग बधा य रंगो करतां वधारे प्रमाणमां करवामां आव्यो छे | चित्रमांनो लीला रंगवाळो भाग, ते रंगमां जंगाल पडतो होवाथी, खवाई I गयो छे । प्रतिने छेडे नीचे प्रमाणेनो टुंक उल्लेख छे "श्री कल्पप्रथमखंडपुस्तकं ॥ छ ॥ ।। ।। संवत् १५७३ वर्षे अषाढ वदि १३” प्रतिनी स्थिति एकंदर सारी गणाय । प्रति मोदीना भंडारनी छे माटे तेनी संज्ञा अमे मो० राखी छे । ५ ले० प्रति — आ प्रति पण उपरोक्त पाटणना सागरगच्छना उपाश्रयमां रहेल लेहेरु वकीलना भंडारमांनी छे । तेनां पानां २०७ छे, दरेक पानानी पुठीढ़ीठ संत्तर सत्तर पंक्तिओ छे अने पंक्तिदीठ ६९ थी ७४ अक्षरो छे । प्रतिनी लंबाई १३ || इंच अने पोळाई ५ इंच छे । प्रति एक वाजुना वे खुणेथी उंदरे करडेली छे तेथी तेना आरंभनां ४० पानां सुधीमां एक एक वे वे लीटीओना केटलाक अक्षरो खवाई गया छे । प्रति अंते आ प्रमाणेनो उल्लेख छे “श्रीकल्पप्रथमखंडपुस्तकं ॥ छ ॥ ॥ कल्याणमस्तु ॥ सं० १५७८ वर्षे अश्वयुजि पंचम्यां बुधे लिखितमिदं वाच्यमानं चिरं नंद्यात् ॥” प्रतिनी स्थिति जीर्ण छे । प्रति लेहेरु वकीलना भंडारनी होवाथी अमे एनी संज्ञा ले० राखी छे । उपरोक्त मोंका मोदीनो अने लेहेरु वकीलनो ए बन्ने य भंडारो श्रीहेमचन्द्र जैन लाइब्रेरीनी देखरेखमां छे । एटले उपरोक्त बन्ने य प्रतिओ अमे तेना सेक्रेटरी श्रीयुत रुभाई भोगीलाल द्वारा मेळवी छे । ६ कां० प्रति - आ प्रति अमारा परम उपास्य गुरुदेव पूज्यपाद प्रवर्तक श्री १०८ श्रीकांतिविजयजी महाराजना वडोदरा नजीक आवेला छाणीना पुस्तकसंग्रहमांनी छे । आ प्रति डे० प्रतिनी पेठे संपूर्ण ग्रन्थनी छे । आनां पानां ६८६ छे, दरेक पानानी पुठीपीठ सोळ सोळ पंक्तिओ छे अने पंक्तिदीठ ६१ थी ६९ अक्षरो छे । प्रतिनी लंबाई १२ इंचनी अने पोळाई ५ || इंचनी छे । प्रतिना अंतमां नीचे प्रमाणेनो उल्लेख छे—— 1 Jain Education International “|| श्रीगूर्जरेलावनिताविभूषणं लक्ष्मीविलासास्पदमङ्गिमण्डितम् । प्रह्लादनश्रीजिन पार्श्वभूपितं प्रह्लादनाख्यं पुरमस्ति विश्रुतम् ॥ १ ॥ प्रजासु निखिलाखोशवंशोऽस्ति तत्र विश्रुतः । तत्रास्ति श्रावकश्चेलुः कोठारीकुलभूषणः || २ || तस्य सूनुरनूनश्रीर्यशस्करण इत्यभूत् । भार्यासीद् यमुना तस्य शीलैकचारुभूषणा ॥ ३ ॥ पुत्रौ द्वौ सस्तयोराद्यः केशवलालनामकः । द्वितीयोऽमृतलालाख्यः कनिष्ठोऽप्यकनिष्ठधीः ॥ ४॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002510
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Part 01
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorChaturvijay, Punyavijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year2002
Total Pages296
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bruhatkalpa
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy