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________________ जैनदर्शन में कारण-व १६ ही होती है, निमित्त कारण से नहीं। जैसे- घट मिट्टी के सदृश होता है, किन्तु दण्डादि के सदृश नहीं होता। - कार्य व्यवस्था : एक समन्वयात्मक दृष्टिकोण कार्य-कारण की एकान्त सदृशात्मकता का खण्डन करते हुए भट्ट अकलंक (७२० से ७८० ई. शती) ने 'राजवार्त्तिक' में कहा है स्यान्न "नायमेकान्तोऽस्ति- 'कारणसदृशमेव कार्यम्' इति कुतः । तत्रापि सप्तभंगीसंभवात्। कथम् । घटवत्। यथा- घट: कारणेनमृत्पिण्डेन स्यात्सदृशः सदृशः इत्यादि । मृददव्याजीवनुपयोगाद्यादेशात् स्यात्सदृशः । पिण्डघटसंस्थानादिपर्यायादेशात् स्यान्नसदृश: । ..... यस्यैकान्तेन कारणानुरूपं कार्यम्, तस्य घटपिण्डशिवकादिपर्याया उपलभ्यन्ते । किंच, घटेन जलधारणादिव्यापारो न क्रियते मृत्पिण्डे तद्दर्शनात् । अपि च मृत्पिण्डस्य घटत्वेन परिणामवद् घटस्यापि घटत्वेन परिणामः स्यात् एकान्तसदृशत्वात्। न चैवं भवति । अतो नैकान्तेन कारणसदृशत्वम्। २७ अर्थात् यह कोई एकान्त नहीं है कि कारण के सदृश ही कार्य हो । पुद्गल द्रव्य की दृष्टि से मिट्टी रूप कारण के समान घड़ा होता है, पर पिण्ड और घट आदि पर्यायों की अपेक्षा दोनों विलक्षण हैं। यदि कारण के सदृश ही कार्य हो तो घट अवस्था से भी पिण्ड, शिवक आदि पर्यायें मिलनी चाहिए थीं। जैसे - मृत्पिण्ड में जल नहीं भर सकते उसी तरह घड़े में भी नहीं भरा जाना चाहिए था और मिट्टी की भाँति घट का भी घट रूप से ही परिणमन होना चाहिए था, कपाल रूप नहीं, कारण कि दोनों सदृश जो हैं। परन्तु ऐसा तो कभी होता नहीं है, अतः कार्य एकान्त से कारण सदृश नहीं होता। उसकी सदृशता कथंचित् ही होती है। इसी प्रकार असदृशता भी कथंचित् होती है। विशेषावश्यक भाष्य में कारण- विचार विशेषावश्यक भाष्य में द्रव्य एवं भाव की कारणता का विस्तार से विचार किया है। वहाँ द्रव्य की कारणता का विचार निम्नांकित बिन्दुओं के आधार पर किया गया है १. तत्द्रव्य और अन्यद्रव्य कारण । २. निमित्त और नैमित्तिक कारण। ३. समवायी और असमवायी कारण ४. षट्कारकों की कारणता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002509
Book TitleJain Darshan me Karan Karya Vyavastha Ek Samanvayatmak Drushtikon
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShweta Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2007
Total Pages718
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size11 MB
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