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________________ ५४० जैनदर्शन में कारण-कार्य व्यवस्था : एक समन्वयात्मक दृष्टिकोण १६५. उत्तराध्ययन सूत्र २०.३७ १६६. आचारांग सूत्र १.१.१.५ १६७. आचारांग सूत्र १.५.२. सूत्र १५२ १६८. अमरकोश, द्वितीय काण्ड, ब्रह्म वर्ग, श्लोक ६२ १६९. अग्नि पुराण, उद्धृत 'श्री जैन दिवाकर स्मृति ग्रन्थ पृष्ठ ५०५ १७०. (अ) वैशेषिक सूत्र १.१.२ (ब) “यः स्यात् प्रभवसंयुक्तः स धर्म इति निश्चयः' ___ -महाभारत, शान्ति पर्व. अध्ययन १०९.१० १७१. छान्दोग्योपनिषद्, २.२३ १७२. महाभारत, अनुशासन पर्व ११५.१ १७३. महाभारत, वन पर्व, ३१३.७६ १७४. मनुस्मृति १.१०८ १७५. नारदस्मृति, उद्धृत 'पुरुषार्थ चतुष्टयः दार्शनिक अनुशीलन' पृष्ठ १२६ १७६. महाभारत शान्ति पर्व, अध्याय १६७.१२, १४ १७७. 'कामस्तदग्रे समवर्तताधि मनसो रेत: प्रथमं यदासीत्' -ऋग्वेद १०.१२९.४ १७८. त्रिविधा भवति श्रद्धा देहिनां सा स्वभावजा। सात्विकी राजसी चैव तामसी चेति तां श्रृणु।। -गीता १७.२ १७९. ब्रह्म बिन्दु, उपनिषद्, मंत्र २ १८०. गीता १४.२० १८१. ज्ञानार्णव ३.४ उद्धृत जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश, भाग तृतीय, पृष्ठ ७० १८२. उत्तराध्ययन, अध्ययन ३, गाथा १ १८३. 'सुइं च लभुं सद्धं च वीरियं पुण दुल्लह' - उत्तराध्ययन ३.१० १८४. ‘से णं भंते! संजमे किं फले?-अणण्हयफले" -स्थानांग सूत्र स्थान ३, उद्देशक ३, सूत्र ४१८ १८५. चउव्विहे संजमे पण्णत्ते तंजहा- मणसंजमे, वइसंजमे, कायसंजमे, उवगरणसंजमे। -स्थानांगसूत्र, स्थान ४, उद्देशक २, सूत्र ३५१ www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal. Use Only
SR No.002509
Book TitleJain Darshan me Karan Karya Vyavastha Ek Samanvayatmak Drushtikon
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShweta Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2007
Total Pages718
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size11 MB
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