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पुरुषवाद और पुरुषकार ५०७ क्रिया यानी सदाचरण में रुचि रखो और अक्रिया का त्याग करो। सम्यक् दृष्टि पूर्वक दुश्चर धर्म का आचरण करो। परीषह-जय में पुरुषार्थ
जैन धर्म में परीषहों को सहने का जो उपदेश दिया गया है, उसमें भी साधक के पुरुषार्थ का ही पक्ष प्रकट होता है। साधु के लिए २२ परीषह बताए हैं। जिनमें कुछ अनुकूल परीषह हैं तथा कुछ प्रतिकूल। दोनों ही प्रकार के परीषह साधक को साधना से डिगा सकते हैं। किन्तु जो इन परीषहों के उपस्थित होने पर समभाव पूर्वक आत्म पौरुष (पुरुषार्थ) का प्रयोग करता है।२०° वह पूर्वबद्ध कर्मों की तीव्रता से निर्जरा करता है। देव, मनुष्य और तिथंच के द्वारा उपसर्ग दिए जाने पर भी साधु समत्व भावों का त्याग नहीं करता है तो वह निरन्तर मोक्ष मार्ग में पराक्रम करता है।२०१ वीर्य के रूप में पुरुषार्थ निरूपण
प्रत्येक जीव में पुरुषार्थ पराक्रम का वाचक वीर्य होता है। भगवान से प्रश्न किया गया कि हे भगवन! जीव सवीर्य है या अवीर्य? भगवान ने उत्तर दिया- जीव सवीर्य भी है और अवीर्य भी। जिन जीवों में उत्थान, कर्म, बल, वीर्य और पुरुषपराक्रम हैं वे जीव लब्धि-वीर्य और करण वीर्य दोनों से सवीर्य हैं। जो जीव उत्थान, बल, वीर्य, पराक्रम से रहित हैं वे लब्धि वीर्य से सवीर्य हैं, किन्तु करण वीर्य से अवीर्य हैं।०२ लब्धि का अर्थ है योग्यता अर्थात् उनमें वीर्य या पुरुषार्थ करने की योग्यता तो है, किन्तु पुरुषार्थ करते नहीं है इसलिए वे लब्धिवीर्य कहलाते हैं तथा करण का अर्थ है-व्यापार। अर्थात् जो जीव वीर्य या पुरुषार्थ का प्रयोग करते हैं वे करण वीर्य कहलाते हैं। जो जिस अपेक्षा से वीर्यवान् है, उसे उसी अपेक्षा से भगवान ने सवीर्य या अवीर्य कहा है।
सूत्रकृतांग सूत्र के प्रथम श्रुतस्कन्ध के आठवें 'वीर्य' अध्ययन में बाल-वीर्य और पण्डित-वीर्य का विवेचन है। प्रमाद युक्त कर्म को बाल वीर्य तथा अप्रमादयुक्त अकर्म अथवा संयम स्वरूप पराक्रम को पण्डितवीर्य कहा है।०३ प्राणघातक, कषाय
और राग-द्वेष को बढाने वाले, पापजन्य जितने भी पराक्रम हैं, वे सभी सकर्मवीर्य या बालवीर्य हैं। अकर्म वीर्य में अध्यात्म बल (धर्मध्यान आदि) से समस्त पापप्रवृत्तियों, मन और इन्द्रियों को, दुष्ट अध्यवसायों तथा भाषा के दोषों को रोकने की प्रवृत्तियाँ समाहित हैं।
___ नियुक्तिकार वीर्य को द्रव्य और भाव रूप से दो प्रकार का बतलाते हैं। सूत्रकृतांग के 'वीर्य' अध्ययन में भाव वीर्य का निरूपण है। मनोवीर्य, वाग्वीर्य,
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