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पुरुषवाद और पुरुषकार ४७७ (पुरुषवादी) हमने 'पुरुष एव इदं सर्वम्' इसका अवधारण करके बात कही है, 'इदमेव पुरुषः' को लक्ष्य करके नहीं।
प्रतिप्रश्न से समाधान- यह पुरुष चार अवस्थाओं में से एक अवस्थामात्र स्वरूप के रूप में व्यवस्थापित किया जाता है क्योंकि सभी अवस्थाओं में चैतन्य की वृत्ति रहती है। वह पुरुष विनिद्रा अवस्था से (अभिन्न) अनन्य होता है। इस प्रकार पुरुष आत्यन्तिक निद्रा के विगमन स्वरूप के कारण विनिद्रावस्था लक्षण वाला होता है। किन्तु यह विनिद्रावस्था अपने से भिन्न स्वरूप वाली नहीं हो सकती, अन्यथा अपने स्वरूप के त्याग की आपत्ति आ जाएगी।
यदि वह पुरुष मात्र विनिद्रावस्था लक्षण वाला होता है तो पुरुष में विनिद्रावस्था की भाँति जाग्रत, सुप्त, सुषुप्ति आदि अवस्था भी होती है। पुरुष के इन भिन्न-भिन्न अवस्थाओं में रहने से असर्वगतत्व का दोष आता है।
यदि विनिद्रा अवस्था लक्षण वाला पुरुष सर्व स्वरूप होने से विनिद्रा अवस्था मात्र ही नहीं होता, वह विनिद्रा अवस्था भी सर्व स्वरूप होती है अर्थात् विनिद्रा अवस्था वाला पुरुष भी सर्वात्मक होता है। यहाँ प्रश्न होता है कि यदि प्रत्येक अवस्था में उस विनिद्रा अवस्था की सर्वात्मकता है, तो तृण आदि भी सर्वात्मक या सर्वगत हो जायेंगे। फिर पुरुष के एकत्व की कल्पना से क्या लाभ?८२ यदि विनिद्रावस्था पुरुष का लक्षण नहीं है तो उसका अभाव सिद्ध होता है। विनिद्रावस्था का अभाव होने से चार अवस्था वाले सर्वात्मक पुरुष का अभाव सिद्ध होता है।
शंका- यदि विनिद्रा लक्षण से विपरीत भी पुरुष पुरुष ही है, अवधारण भेद के कारण। विनिद्रा अवस्था के अतिरिक्त भी अवस्थाएँ पुरुष का लक्षण बनती हैं। इस दृष्टि से पुरुष मेचक (वर्ण संकर) की भाँति अनेक रूप वाला है।
समाधान- इस प्रकार तो अवधारण भेद का अवसर नहीं है, अन्याय्य होने से, क्योंकि इससे आपकी प्रतिज्ञा 'चैतन्यात्मकैकपुरुषमयमिदं सर्वम्' की हानि हो जाती है। यदि एक पुरुषमयता की प्रतिज्ञा का पालन किया जाता है, तो भिन्न-भिन्न अर्थ को विषय करने के आधार पर अवधारण करने का औचित्य विशीर्ण (नष्ट) हो जाता है। जिस प्रकार यह कहा जाय कि घट ही रूपादि हैं तो इस पक्ष में रूपादि घट से अर्थान्तरभूत नहीं माने जा सकते। रूप-स्वात्मा का रूपावस्था ही लक्षण है रसादि अवस्था नहीं। घटस्वरूप की तो रूपावस्था लक्षण ही है, उसमें अन्य अवस्थाओं का त्याग नहीं होता। इस तरह कौनसा ऐसा अर्थ होगा, जो रूपादि के अभाव वाला हो। इसी प्रकार विनिद्रा अवस्था लक्षण स्वरूप पुरुष से भिन्न अर्थ का अभाव होने से
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