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________________ ३६७ ३६७ ३६८ ३६९ ३७० ३७० ३७१ ३७३ ३७४ ३७५ > कर्म की अवधारणा : कतिपय मुख्य बिन्दु • कर्म और भाग्य • ईश्वर और कर्मफल - न्याय वैशेषिक दर्शन में कर्मफलदाता : ईश्वर - वेदान्त में ईश्वर द्वारा कर्मफल . सांख्यादि अनीश्वरवादी दर्शनों में कर्मफल • जैनमत में कर्म, कर्मफल और ईश्वर विषयक विचार • कर्मवादियों पर ईश्वरवादियों का आक्षेप और उसका समाधान > जैन दर्शन में कर्म सिद्धान्त : विकसित स्वरूप • कर्म का अर्थ एवं स्वरूप • कर्म बन्ध : चार प्रकार • कर्म की विभिन्न अवस्थाएँ अष्टविध कर्म और उनकी उत्तर प्रकृतियाँ कर्मबंध के हेतु • कर्मबन्ध के विशिष्ट कारण • कर्म मोक्ष > विशेषावश्यक भाष्य में कर्म-विवेचन • कर्म की सिद्धि : विभिन्न हेतुओं से • कर्म की मूर्तता • कर्म की परिणामिता • विचित्रता में कर्म की कारणता • परलोक का आधार : कर्म ३७६ ३७८ ३८२ ४८८ ४९० ३९३ ३९४ ३९५ ३९९ ४०० ४०१ ४०२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002509
Book TitleJain Darshan me Karan Karya Vyavastha Ek Samanvayatmak Drushtikon
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShweta Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2007
Total Pages718
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size11 MB
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