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४६८ जैनदर्शन में कारण-कार्य व्यवस्था : एक समन्वयात्मक दृष्टिकोण मनुष्यगण की उत्पत्ति स्वीकृत है। आठवाँ अनुग्रह सर्ग है, जिसमें ऐसे महर्षियों की उत्पत्ति होती है जिनके अनुग्रह से दूसरों का कल्याण होता है। ये चौथे से आठवें तक के पाँच सर्ग वैकृत कहलाते हैं। नवम कौमार सर्ग है, जिसमें प्राकृत और वैकृत दोनों का मिश्रण होता है।२९ महाभारत और गीता में पुरुषवाद
महाभारत में भी पुरुषवाद के बीज उपलब्ध हैं। यहाँ शान्ति पर्व में परमात्मा से सृष्टि की रचना के रूप में पुरुषवाद का अस्तित्व मिलता है। वहाँ मनु के द्वारा परमात्मा से सृष्टि की उत्पत्ति बताई गई है, यथा
अक्षरात् खं ततो वायुस्ततो ज्योतिस्ततो जलम्।
जलात् प्रसूता जगती जगत्यां जायते जगत्।।
मनु कहते हैं- "बृहस्पते! अविनाशी परमात्मा से आकाश, आकाश से वायु, वायु से अग्नि, अग्नि से जल और जल से यह पृथ्वी उत्पन्न हुई है। इस पृथ्वी में ही सम्पूर्ण पार्थिव जगत् की उत्पत्ति होती है। यह परमात्मा ही परम कारण है और इसके सिवाय जो कुछ है, सब कार्यमात्र है। ३९ ।।
परमात्मा का स्वरूप बताते हुए कहते हैं कि यह परमात्म तत्त्व न गर्म है न शीतल, न कोमल है न तीक्ष्ण, न खट्टा है न कसैला, न मीठा है न तीखा है और शब्द, गन्ध एवं रूप से भी रहित है। उसका स्वरूप सबसे उत्कृष्ट एवं विलक्षण है।२२ परमात्मा व्यापक, व्याप्य और उनका साधन है तथा सम्पूर्ण लोक में सदा ही स्थित रहने वाला कूटस्थ, सबका कारण और स्वयं ही सब कुछ करने वाला है।३३
इसी शान्ति पर्व में मधुसूदन द्वारा सृष्टि की रचना का भी उल्लेख हुआ है। वहाँ कहा गया है कि महाप्राज्ञ पितामह, कमलनयन के धारक भगवान् श्री कृष्ण अपनी महिमा से कभी च्युत न होने वाले, सबके कर्ता, अकृत, सर्वव्यापी तथा सम्पूर्ण भूतों की उत्पत्ति और प्रलय के स्थान हैं। उन्होंने पंच महाभूतों की रचना की। जैसा कि कहा है
महाभूतानि भूतात्मा महात्मा पुरुषोत्तमः।
वायुज्योतिस्तथा चापः खं च गां चान्वकल्पयत्।२५
श्रीकृष्ण ही भूत और भविष्य के आधार हैं। उनके संकर्षण का प्रादुर्भाव होने के पश्चात् श्री हरि की नाभि से एक दिव्य कमल प्रकट हुआ, जो सूर्य के समान
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