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________________ २७५ २७५ २७६ २७८ २८४ २८४ २८७ २९० > दिगम्बर ग्रन्थों में नियति की चर्चा • स्वयम्भूस्तोत्र में नियति • अष्टशती में भवितव्यता • गोम्मटसार एवं स्वामिकार्तिकेयानुप्रेक्षा में नियति २७६ > जैनागम एवं दार्शनिक ग्रन्थों में नियतिवाद का निरूपण एवं निरसन २७८ • सूत्रकृतांग और उसकी शीलांक टीका में नियतिवाद का निरूपण एवं निरसन • उपासकदशांग में नियतिवाद का प्रत्यवस्थान २८२ प्रश्नव्याकरण की टीकाओं में नियतिवाद का खण्डन द्वादशारनयचक्र में नियतिवाद का उपस्थापन एवं निरसन • शास्त्रवार्ता समुच्चय में नियतिवाद का खण्डन • सन्मति तर्क टीका में नियतिवाद का स्वरूप एवं उसका निरसन • धर्मसंग्रहणि टीका में मलयगिरि द्वारा नियतिवाद का निरसन २९२ • जैन तत्त्वादर्श में नियतिवाद का खण्डन > काललब्धि और नियति • काललब्धि के अभाव में सम्यक्त्व का अभाव • मोक्ष में काललब्धि की हेतुता • सभी पर्यायों में काललब्धि > सर्वज्ञता और नियतिवाद → क्रमबद्धपर्याय और नियतिवाद » पूर्वकृत कर्म और नियतिवाद ३०३ > पुरुषार्थ और नियतिवाद > आचार्य महाप्रज्ञ के मत में नियति का स्वरूप ३०४ > निष्कर्ष ३०६ २९६ २९६ २९७ २९८ ३०४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002509
Book TitleJain Darshan me Karan Karya Vyavastha Ek Samanvayatmak Drushtikon
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShweta Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2007
Total Pages718
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size11 MB
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