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________________ • 1 · · आचार्य सिद्धसेन द्वारा उपस्थापित नियतिवाद नियति द्वात्रिंशिका में निरूपित नियतिवाद ० सर्वसत्त्वों के स्वभाव की नियतता ० बुद्धि के धर्मादि आठ अंग और नियति ० नियतिवाद में जीव का स्वरूप · नन्दीसूत्र की अवचूरि में नियतिवाद आचारांग सूत्र की शीलांक टीका में नियतिवाद M ० इन्द्रिय और मन का स्वरूप ० स्वर्ग-नरकादि नियति से ० शरीर आदि का कर्ता आत्मा नहीं ० जगद्वैचित्र्य और धर्म-अधर्म का अप्रत्यक्ष रूप कर्तृत्ववाद को सिद्ध करने में असमर्थ ० उपादान - निमित्त कारण से कर्तृप्राधान्यवाद का घात ० दृष्टान्तमात्र से आत्मवाद को सिद्ध करना असंभव हरिभद्रसूरिकृत शास्त्रवार्ता समुच्चय में नियतिवाद लोकतत्त्व निर्णय में नियतिवाद यशोविजयकृत नयोपदेश में नियतिवाद • तिलोकऋषि द्वारा निबद्ध काव्य में नियतिवाद O ज्ञान में भी नियति ० उच्चकुलीनों का स्वभाव नियति से नियत ० नियतिवादी द्वारा मान्य सृष्टि स्वरूप ० नियतिवाद द्वारा मान्य तत्त्व ० अनुमान का स्वरूप नियतिवाद में कर्तृत्ववाद (आत्मवाद) के खण्डन में नियतिवाद का प्रतिपादन Jain Education International For Private & Personal Use Only xlix २६० २६१ २६१ २६१ २६१ २६३ २६३ २६४ २६४ २६४ २६५ २६५ २६६ २६६ २६७ २६७ २६८ २६८ २६९ २६९ २७२ २७२ २७३ www.jainelibrary.org
SR No.002509
Book TitleJain Darshan me Karan Karya Vyavastha Ek Samanvayatmak Drushtikon
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShweta Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2007
Total Pages718
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size11 MB
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