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________________ पूर्वकृत कर्मवाद ३८५ पिण्ड प्रकृतियाँ-उत्तर प्रकृतियाँ सहित१. गतिनाम कर्म- (१) नरक गति (२) तिर्यच गति (३) मनुष्य गति (४) देव गति। जातिनाम कर्म-(१) एकेन्द्रिय (२) बेइन्द्रिय (३) तेइन्द्रिय (४) चतुरिन्द्रिय (५) पंचेन्द्रिय। शरीरनाम कर्म- (१) औदारिक (२) आहारक (३) वैक्रिय (४) तेजस (५) कार्मण। अंगोपांगनाम कर्म- (१) औदारिक (२) वैक्रिय (३) आहारक। बन्धननाम कर्म- (१) औदारिक (२) आहारक (३) वैक्रिय (४) तेजस (५) कार्मण। ये पाँच अथवा १५ बन्धन नाम कर्म इस प्रकार हैं(१) औदारिक-औदारिक बन्धन नाम (२) औदारिक-तेजस बन्धन नाम (३) औदारिक-कार्मण बन्धन नाम। (४) वैक्रिय-वैक्रिय बन्धन नाम (५) वैक्रिय-तेजस बन्धन नाम (६) वैक्रिय-कार्मण बन्धन नाम (७) आहारक-आहारक बन्धन नाम (८) आहारक-तेजस बन्धन नाम (९) आहारक-कार्मण बन्धन नाम (१०) औदारिक-तेजस कार्मण बन्धन नाम (११) वैक्रिय-तेजस-कार्मण बन्धन नाम (१२) आहारक-तेजस कार्मण बन्धन नाम (१३) तेजस- तेजस बन्धन नाम (१४) तेजस कार्मण बन्धन नाम (१५) कार्मण-कार्मण बन्धन नाम। संघात नाम कर्म- (१) औदारिक (२) वैक्रिय (३) आहारक (४) तेजस (५) कार्मण। संहनन नाम कर्म- (१) वज्रऋषभनाराच (२) ऋषभनाराच (३) नाराच (४) अर्द्धनारच (५) कीलिका (६) छेवट्ठ। संस्थान नाम कर्म- (१) समचतुरन-संस्थान (२) न्यग्रोध-परिमण्डल (३) सादि संस्थान (४) कुब्ज (५) वामन (६) हुण्डक। वर्णनाम कर्म- (१) कृष्ण (२) नील (३) लोहित (४) हारिद्र (५) सित। गन्धनाम कर्म- (१) सुरभि-सुगन्ध नाम कर्म (२) दुरभि-दुर्गन्ध नाम कर्म। रसनाम कर्म- (१) तिक्तरस (२) कटुरस (३) कषायरस (४) अम्ल (५) मधु। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002509
Book TitleJain Darshan me Karan Karya Vyavastha Ek Samanvayatmak Drushtikon
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShweta Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2007
Total Pages718
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size11 MB
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