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________________ ३४४ जैनदर्शन में कारण-कार्य व्यवस्था : एक समन्वयात्मक दृष्टिकोण बृहदारण्यकोपनिषद् में कहा गया है 'पुण्यो वै पुण्येन कर्मणा भवति पापः पापेनेति ५ पुण्य कर्म से जीव पुण्य वाला और पाप से पाप करने वाला होता है। वहाँ ही कहा है- 'काममय एवायं पुरुष इंति स यथाकामो भवति तत्कतुर्भवति। यत्क्रतुर्भवति तत्कर्म कुरुते यत्कर्म कुरुते तदभिसंपद्यते' अर्थात् मनुष्य काममय ही होता है, जैसी उसकी इच्छा होती है वैसा ही उसका विचार बनता है या उसी अनुरूप वह चिन्तन करता है। विचार या चिन्तन के अनुरूप ही वह कर्म करता है, और जैसा कर्म करता है वैसा ही फल प्राप्त करता है। छान्दोग्योपनिषद् में शुभ-अशुभ कर्म की फल प्राप्ति देश-काल के निमित्त से बताई गई है- 'कृतस्य कर्मणः शुभाशुभस्य फलप्राप्तेर्देशकालनिमित्तापेक्षत्वात्। ६ कर्म विषयक अन्य वाक्य भी उपनिषद् वाङ्मय में प्राप्त होते हैं, यथा१. 'कर्मणा पितृलोको विद्यया देवलोकः' -बृहदारण्यकोपनिषद् १.५.१६ कर्म से पितृलोक को तथा विद्या से देवलोक को प्राप्त करता है। २. 'त्रिकर्मकृत्तरति जन्ममृत्यू'-कठोपनिषद् १.१७ तीन कर्मों को करने वाला जन्म एवं मृत्यु को पार कर लेता है। ३. 'ये कर्मणा देवानपियन्ति'-तैत्तिरीयोपनिषद्, ब्रह्मानन्दवल्ली ८ जो कर्म से देवों को भी प्राप्त करते हैं। ४. 'सोऽस्यायमात्मा पुण्येभ्यः कर्मभ्यः'-ऐतरेयोपनिषद् २.१.४ यह आत्मा पुण्य कर्मों से है। ५. 'तत्त्वज्ञानोदयादूर्ध्व प्रारब्धं नैव विद्यते।' 'कर्म जन्मान्तरीयं यत्प्रारब्धमिति कीर्तितम्।'-नादबिन्दूपनिषद् २२, २३ तत्त्वज्ञान होने के पश्चात् प्रारब्ध नहीं रहता। जन्मान्तर का कर्म प्रारब्ध कहलाता है। ६. 'वर्णाश्रमाचारयुता विमूढाः कर्मानुसारेण फलं लभन्ते' -मैत्रेटयुपनिषद् १.१३ वर्णाश्रम के आचार से विमूढ मनुष्य कर्म के अनुसार फल को प्राप्त करते हैं। ७. 'कर्मकरः कर्षकवत्फलमनुभवति' 'शुभाशुभातिरिक्तः शुभाशुभैरपि कर्मभिर्न लिप्यते।'- परब्रह्मोपनिषद् कर्म करने वाला व्यक्ति कर्षक के समान फल प्राप्त करता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002509
Book TitleJain Darshan me Karan Karya Vyavastha Ek Samanvayatmak Drushtikon
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShweta Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2007
Total Pages718
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size11 MB
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