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पूर्वकृत कर्मवाद ३४३ दण्ड मिला, उतने काल में जो वह स्वकर्म करने से वंचित रहा, इससे वह दूसरों से पीछे रह गया। इस भाव से ईश्वर जीव की उन्नति तथा अवनति का हेतु है। अत: वास्तव में तो जीव के स्वकृत कर्म ही उसकी उन्नति तथा अवनति में कारण होते हैं, इसी भाव से जीव को कर्म करने में स्वतन्त्र और भोगने में परतन्त्र माना गया है। कर्मानुसार फल देने से ईश्वर में कोई दोष नहीं आता।
____ पाप कर्म के संबंध में एक मंत्र इस प्रकार है- 'मा वो भुजेमान्यजातमेनो मा तत्कर्म वसवो यच्चयध्वे र अर्थात् हे निवास करने वालों! जो अन्य के द्वारा उत्पन्न पाप कर्म है, वह कर्म तुम मत इकट्ठा करो।
_ 'यस्मिन्वृक्षे मध्वदः सुपर्णा निविशन्ते सुवते चाधि विश्वे ३ वृक्ष रूप इस जगत् में मधुर कर्मफलों को खाने वाले उत्तम कर्मयुक्त जीव स्थिर होते हैं और सन्तानों को उत्पन्न करते हैं। अर्थात् संसार में जीवों ने जैसा कर्म किया वैसा ही अवश्य ईश्वर के न्याय से भोग्य है।
उपर्युक्त प्रकरणों से स्पष्ट होता है कि कर्मवाद वैदिक काल में प्रतिष्ठित था तथा वेदों में अनेक ऐसे सूक्त हैं जिनसे कर्मवाद की अवधारणा का सामान्य परिचय प्राप्त होता है। पुण्य-पाप अथवा शुभ-अशुभ, स्वर्ग-नरक, मुक्ति, परलोक एवं पुनर्जन्म आदि अनेक ऐसे तत्त्व हैं जिनको कर्मसिद्धान्त से अलग रखकर ठीक एवं सही ढंग से परिभाषित नहीं किया जा सकता। यह सत्य है कि इस काल में 'कर्मवाद' का उतना विस्तृत एवं सुव्यवस्थित दार्शनिक चित्रण नहीं हुआ है जितना परवर्ती काल में। फिर भी इन सारगर्भित विवरणों से कर्मवाद के मूल स्वरूप का स्पष्टीकरण तो होता ही है। वेदों में वर्णित मंत्रों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि कर्मसिद्धान्त का प्रारम्भिक सूत्रपात यहीं से प्रारम्भ हुआ। उपनिषदों में कर्म-चर्चा
प्राचीन भारतीय साहित्य में उपनिषदों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। इनमें किसी भी सिद्धान्त को तार्किक एवं दार्शनिक शैली में अभिव्यक्त करने का हर संभव प्रयास किया गया है। कर्मवाद पर भी दार्शनिक दृष्टि से चिन्तन उपनिषदों में सम्प्राप्त होता है। केनोपनिषद्, प्रश्नोपनिषद्, मुण्डकोपनिषद्, माण्डूक्योपनिषद्, तैत्तिरीयोपनिषद्, ऐतरेयोपनिषद्, छान्दोग्योपनिषद्, बृहदारण्यकोपनिषद् और श्वेताश्वतरोपनिषद् में कर्म से सम्बद्ध कई तथ्य निरूपित हैं।
मुण्डकोपनिषद् में 'विद्वान्पुण्यपापे विधूय निरंजनः परमं साम्यमुपैति ४ वाक्य के अन्तर्गत पुण्य और पाप शब्द शुभ एवं अशुभ कर्मों के द्योतक है।
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