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________________ नियतिवाद ३३७ २४५. जैन बौद्ध गीता के आचार दर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन, पृष्ठ २८० २४६. क्रमबद्धपर्याय, पृ. ६७ २४७. क्रमबद्धपर्याय, पृ. ६९ २४८. कर्मवाद, पृ. ११६ २४९. कर्मवाद, पृ. ११७, ११८ २५०. कर्मवाद, पृ. ११९. १२० २५१. (क) सूत्रकृतांग १.१.२.३ की शीलांक टीका में (ख) प्रश्नव्याकरण सूत्र १.२.७ की अभयदेव वृत्ति में (ग) शास्त्रवार्ता समुच्चय, स्तबक २, श्लोक ६२ की यशोविजय की टीका में (घ) सन्मति तर्क ३.५३ की टीका में (ड) लोक तत्त्व निर्णय, पृ. २५ पर श्लोक २७ में २५२. अपरवाद, नियतिवाद अधिकरण, श्लोक २ २५३. श्वेताश्वतरोपनिषद् १.२ २५४. श्वेताश्वतरोपनिषद् १.२ पर शांकरभाष्य २५५. हरिवंश पुराण ६२.४४ २५६. हरिवंश पुराण ४३.६८ २५७. नारदीय महापुराण, पूर्व खण्ड, अध्याय ३७, श्लोक ४७ २५८. रामायण, किष्किन्धा काण्ड, सर्ग २५, श्लोक ४ २५९. महाभारत शांति पर्व, अध्याय २२६, श्लोक १० २६०. अभिज्ञान शाकुन्तल, १.१४ २६१. अभिज्ञान शाकुन्तल, ६.९ के पूर्व २६२. राजतरंगिणी, अष्टम तरंग, श्लोक २२८० २६३. काव्यप्रकाश, प्रथम उल्लास, श्लोक १ २६४. सुत्तपिटक के दीघनिकाय के प्रथम भाग में २६५. योगवासिष्ठ २.६२.९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002509
Book TitleJain Darshan me Karan Karya Vyavastha Ek Samanvayatmak Drushtikon
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShweta Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2007
Total Pages718
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size11 MB
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