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________________ नियतिवाद ३२१ “नत्थि महाराज हेतु नत्थि पच्चयो सत्तानं संकिलेसाय, अहेतू अपच्चया सत्ता संकिलिस्सन्ति। नत्थि हेतु, नत्थि पच्चयो सत्तानं विसुद्धिया, अहेतू अपच्चया सत्ता विसुज्झन्ति। नत्थि अत्तकारे, नत्थि परकरे, नत्थि पुरिसकारे, नत्थि बलं, नत्थि वीरियं, नत्थि पुरिसथामो, नत्थि पुरिसपरक्कमो। सब्बे सत्ता सब्बे पाणा सब्बे भूता सब्बे जीवा अवसा अबला अवीरिया नियति-संगतिभावपरिणता छस्वेवाभिजातीसु सुखदुक्खं पटिसंवेदेन्ति।" -सुत्तपिटक के दीघनिकाय के प्रथम भाग में (विपश्यना विशोधन विन्यास, इगतपुरी १९९८) सामञफलसुत्तं मक्खलिगोसालवाद ६७. तत्थ नत्थि 'इमिनाहं सीलेन वा वतेन वा तपेन वा ब्रह्मचरियेन वा अपरिपक्कं वा कम्मं परिपाचेस्सामि परिपक्कं वा कम्मं फुस्स फुस्स ब्यन्तिं करिस्सामी ति हेवं नत्थिा -दीघनिकाय, सामञजफलसुत्त, मक्खलिगोसालवाद योगवासिष्ठ २.६२.९ योगवासिष्ठ ३.६२.२६, ५.८९.२६ ७०. सर्गादौ या यथा रुढा संवित्कचनसंततिः। साऽद्याप्यचलितन्यायेन स्थिता नियतिरुच्यते।। ३.५४.२२ आमहारुद्रपर्यन्तमिदमित्थमितिस्थितेः। आतृणापद्मजस्पन्दं नियमान्नियतिः स्मृता।। ६/१. ३७.२२ - योगवासिष्ठ और उसके सिद्धान्त, पृ. २१७ ७१. योगवासिष्ठ ३.६२.२७ योगवासिष्ठ ५.२४.३१ ७३. योगवासिष्ठ ५.२४.३२ ७४. योगवासिष्ठ ५.२४.३५ योगवासिष्ठ ५.२४.३६ मायापरिग्रहवशाद् बोधो मलिनः पुमान् पशुर्भवति। काल-कला-नियतिवशाद् रागाविद्यावशेन संबद्धः।।-परमार्थसार, कारिका १६ पराप्रवेशिका, पृ. ९, उद्धृत-परमार्थसार की भूमिका पृ. १७ ७८. नियतिर्नियोजयत्येनं स्वके कर्मणि पुद्गलम्-मालिनीविजयोत्तरतन्त्र, १.२९ नियतिर्नियोजनां धत्त विशिष्टे कार्यमण्डले- तन्त्रालोक भाग ६, पृ. १६० नियच्छति भोगेषु अणूनिति नियतिः -तन्त्रालोकटीका, भाग-६, पृ. १६० -परमार्थसार, योगराजकृत विवृत्ति का सट्टिप्पण सहित, मोतीलाल बनारसीदास, वाराणसी, पृ. ३३ के फुटनोट से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002509
Book TitleJain Darshan me Karan Karya Vyavastha Ek Samanvayatmak Drushtikon
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShweta Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2007
Total Pages718
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size11 MB
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