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नियतिवाद २८५ आपादान देखा जाता है। जैसे कोई विद्वान् राजा पराक्रमशाली होकर भी पराजित होता हुआ देखा जाता है, उसी प्रकार पुरुष अनिष्ट स्थितियों से युक्त देखा जाता है। इसका तात्पर्य है कि कोई अन्य अचेतन कर्ता है। ऐसा कोई नियमकारी कारण अवश्य होना चाहिए, जो उन-उन कार्यों के उस प्रकार होने में तथा अन्यथा न होने में कारण बनता है। नियति ही एक मात्र ऐसा कारण है और वही कार्य की कर्त्री है। नियति को कारण स्वीकार करने पर पदार्थों के सदृश या विसदृश कार्यों के घटित होने में कोई व्याघात नहीं आता है। १७१ इसलिए कहा भी है
प्राप्तव्यो नियतिबलाश्रयेण योऽर्थः सोऽवश्यं भवति नृणां शुभोऽशुभो वा । भूतानां महति कृतेऽपि हि प्रयत्ने नाभाव्यं भवतिन भाविनोऽस्ति नाशः । ।
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नियति के बल से ही अर्थ की प्राप्ति होती है। मनुष्यों का जो शुभ-अशुभ होना होता है, वह अवश्य होता है। जीवों के महान् प्रयत्न के बावजूद भी भावी का नाश नहीं होता और अभावी नहीं होता है।
यहाँ यह शंका नहीं करनी चाहिए कि सभी पदार्थों के नियति से आबद्ध होने के कारण क्रिया और क्रियाफल में कोई नियम नहीं रह जाएगा, क्योंकि घटादि पदार्थों के मृत्पिण्ड, दण्ड, चक्र आदि साधनों से प्रयत्नपूर्वक निष्पत्ति होने में भी नियति ही कारण है। १७३
यह नियति पदार्थों से भिन्न है या अभिन्न? इस प्रश्न के उत्तर में कहा गया है कि परमार्थतः यह जगत् का अभिन्न कारण है । १७४ यह उत्पद्यमान पदार्थों से भिन्न नहीं है, अपितु भेद बुद्धि से उत्पन्न होने वाले पदार्थों में भी नियति की अभिन्नता रहती है। जिस प्रकार पुरुष में होने वाली बाल्यावस्था, कुमारावस्था, यौवनावस्था आदि पुरुष से अभिन्न ही होती हैं, उसी प्रकार नियति भी क्रिया और क्रिया के फल से अभिन्न ही होती है। १७५ भेद में अभेद बुद्धि का आभास होने पर तो नियति का अभेद प्रतिपक्षी को भी स्वीकृत होता है। किन्तु भेदबुद्धि का आभास होने पर भी अभेद स्वीकार करना चाहिए, क्योंकि जिस प्रकार स्थाणु और पुरुष अलग-अलग होते हैं, फिर भी उनमें ऊर्ध्वता सामान्य की अपेक्षा अभेद रहता है। १७६ इसी प्रकार क्रिया और क्रिया-फल रूप सभी नियतियों में अभेद होता है । ७७ नियति को कथंचित् भेदाभेद रूप भी स्वीकार किया गया है। कार्यों की निकटता एवं दूरता के आधार पर उसे प्रत्यासन्न एवं अप्रत्यासन्न भी माना गया है। १७८ एक ही नियति से द्रव्य, क्षेत्र, काल एवं भाव की अपेक्षा से विभिन्न स्वरूप प्रकट होते हैं। जब वह नियति द्रव्य से घट रूप में होती है तब पट रूप में नहीं होती। इसी प्रकार क्षेत्र से जिस भू-प्रदेश पर या घट निर्माण में ग्रीवा आदि प्रदेश पर नियति की प्रत्यासत्ति होती है तब अन्य देश में
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