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________________ नियतिवाद २५९ अक्रियावादी में नियतिवाद के भेद १. नास्ति जीव स्वतः नियति से २. नास्ति जीव परत: नियति से ३. नास्ति अजीव स्वतः नियति से ४. नास्ति अजीव परत: नियति से ५. नास्ति आस्रव स्वतः नियति से ६. नास्ति आस्रव परत: नियति से ७. नास्ति बंध स्वतः नियति से ८. नास्ति बंध परतः नियति से ९. नास्ति संवर स्वतः नियति से १०. नास्ति संवर परत: नियति से ११. नास्ति निर्जरा स्वतः नियति से १२. नास्ति निर्जरा परत: नियति से १३. नास्ति मोक्ष स्वतः नियति से १४. नास्ति मोक्ष परतः नियति से प्रश्नव्याकरण और उसकी टीकाओं में नियतिवाद प्रश्नव्याकरण के अनुसार जीव जगत् में जो भी सुकृत या दुष्कृत घटित होता है, वह दैवप्रभाव से होता है। इस लोक में कुछ भी ऐसा नहीं है जो कृतक तत्त्व हो। लक्षणविधान की की नियति है। अतः कहा है- 'जं वि इहं किंचि जीवलोए दीसइ सुकयं वा दुकयं वा एवं जदिच्छाए वा सहावेण वावि दइवतप्पभावओ वावि भवइ। णत्थेत्थ किंचि कयगं तत्तं लक्खणविहाणणियत्तीए कारियं एवं केइ जपंति६ प्रश्नव्याकरण सूत्र के टीकाकार अभयदेवसूरि के अनुसार नियतिवादियों की मान्यता है कि पुरुषकार को कार्य की उत्पत्ति में कारण मानने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि उसके बिना नियति से ही समस्त प्रयोजनों की सिद्धि हो जाती है।" कहा भी गया हैप्राप्तव्यो नियतिबलाश्रयेण योऽर्थः, सोऽवश्यं भवति नृणां शुभोऽशुभो वा। भूतानां महति कृतेऽपि हि प्रयत्ने, नाभाव्यं भवति न भाविनोऽस्ति नाशः।।" जो पदार्थ नियति के बल के आश्रय से प्राप्तव्य होता है वह शुभ या अशुभ पदार्थ मनुष्यों (जीवमात्र) को अवश्य प्राप्त होता है। प्राणियों के द्वारा महान् प्रयत्न करने पर भी अभाव्य कभी नहीं होता है तथा भावी का नाश नहीं होता है। टीकाकार ज्ञानविमलसूरि के अनुसार नियतिवादी नियति से ही जगत् की उत्पत्ति कहते हैं तथा भवितव्यता को सर्वत्र बलीयसी बतलाते हैं - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002509
Book TitleJain Darshan me Karan Karya Vyavastha Ek Samanvayatmak Drushtikon
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShweta Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2007
Total Pages718
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size11 MB
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