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२५६ जैनदर्शन में कारण-कार्य व्यवस्था : एक समन्वयात्मक दृष्टिकोण भी कहा गया है कि इन सावध आचार-विचार वाले मतों से निर्वाण प्राप्त नहीं होता, अपित सत्य, अहिंसादि महाव्रतों के निष्ठापूर्वक पालन से होता है- ऐसा प्रतिपादन सूत्रकृतांग के इस अध्ययन में हुआ है। यहाँ नियतिवाद का प्रसंग होने से नियतिवाद को प्रस्तुत किया जा रहा है
(i) क्रियावादी और अक्रियावादी नियति से प्रेरित- "इह खलु दुवे पुरिसा भवंति-एगे पुरिसे किरियमाइक्खति, एगे पुरिसे णोकिरियमाइक्खति। जे य पुरिसे किरियमाइक्खइ, जे ये पुरिसे णोकिरियमाइक्खइ, दो वि ते पुरिसा तुल्ला एगट्ठा कारणमावन्ना।
इस जगत् में दो प्रकार के पुरुष पाए जाते हैं- एक क्रियावादी और दूसरा अक्रियावादी। ये दोनों ही नियति के आधीन हैं, स्वतंत्र नहीं हैं, अत: नियति की प्रेरणा से क्रियावादी क्रिया का समर्थन करता है और अक्रियावादी अक्रिया का प्रतिपादन करता है। नियति के अधीन होने के कारण ये दोनों ही समान हैं। ये दोनों वाद एक ही अर्थ वाले और एक ही कारण (नियतिवाद) को प्राप्त है।
(ii) सुखदुःखादि स्वनिमित्तक और परनिमित्तक नहीं- क्रियावादी और अक्रियावादी दोनों ही अज्ञानी हैं। ये अपने सुख और दुःख का कारण स्वयं को मानते हुए यह समझते हैं कि मैं जो कुछ भी दुःख पा रहा हूँ, शोक कर रहा हूँ, विलाप कर रहा हूँ, खिन्न हो रहा हूँ, पीड़ा पा रहा हूँ या संतप्त हो रहा हूँ, वह सब मेरे किए हुए कर्म का परिणाम है तथा दूसरा जो दुःख पाता है, शोक करता है, विलाप करता है, खिन्न होता है, पीड़ित होता है या संतप्त होता है, वह सब उसके द्वारा किये हुए कर्म का परिणाम है। इस कारण वह अज्ञजीव स्वनिमित्तक (स्वकृत) तथा परनिमित्तक (परकृत) सुखदुःखादि को अपने तथा दूसरे के द्वारा कृत कर्मफल समझता है, परन्तु एकमात्र नियति को ही समस्त पदार्थों का कारण मानने वाला मेधावी पुरुष तो यह समझता है कि मैं जो कुछ दुःख भोगता हूँ, शोकमग्न होता हूँ या संतप्त होता हूँ, वे सब मेरे किए हुए कर्म (कर्मफल) नहीं हैं तथा दूसरा पुरुष जो दुःख पाता है, शोक आदि से संतप्त-पीड़ित होता है, वह भी उसके द्वारा कृत कमों का फल नहीं है, (अपितु यह सब नियति का प्रभाव है)। इस प्रकार वह बुद्धिमान पुरुष अपने या दूसरे के निमित्त से प्राप्त हुए दुःख आदि को यों मानता है कि ये सब नियतिकृत हैं, किसी दूसरे के कारण से नहीं।
(iii) नियतिवादी द्वारा मान्य जगत् का स्वरूप- नियतिवादी जगत् का स्वरूप बताते हुए कहते हैं- “से बेमि- पाईणं वा जे तसथावरा पाणा ते एवं संघायमावज्जति, ते एवं परियायमावज्जंति, ते एवं विवेगमावज्जंति, ते एवं
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