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२३४ जैनदर्शन में कारण-कार्य व्यवस्था : एक समन्वयात्मक दृष्टिकोण
करेणुकुट्टनीगात्रस्पर्शा इव, सफरस्य बडिशामिषस्वाद इव, इन्दिरस्य संकोचसंमुखारविन्दामोद इव, पतंगस्य प्रदीपा रूप इव, कुरंगस्य मृगयुगेयस्वर इव, दुर्निवारेन्द्रियवेदनावशीकृतानामासन्ननिपातेष्वपि विषयेष्वभिपातः। यदि पुनर्न तेषां दुःखं स्वाभाविकमभ्युपगम्येत तदोपशांतशीतज्वरस्य संस्वेदनमिव, प्रहीणदाहज्वरस्यारनालपरिषेक इव, निवृत्तनेत्रसंरम्भस्य वटाचूर्णावचूर्णमिव, विनष्टकर्णशूलस्य बस्तपूरणमिव, रूढवणस्यालेपनदानमिव, विषयव्यापारो न दृश्यते। दृश्यते चासौ। ततः स्वभावभूतदुःखयोगिन एव जीवदिन्द्रियाः परोक्षज्ञानिनः"।
-प्रवचनसार गाथा ६४ की टीका २५४. प्रवचनसार, गाथा ६६ २५५. नयचक्र, भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली, श्लोक ४ २५६. 'सिद्धान्ताचार्य पं. फूलचन्द्र शास्त्री अभिनन्दन ग्रन्थ', चतुर्थ खण्ड, स्वभाव
परभावविचार, पृ. २९८ २५७. सर्वार्थसिद्धि, अध्याय ५, सूत्र ७ की टीका २५८. कार्तिकेयानुप्रेक्षा, गाथा ४७८ का अंश २५९. 'शान्ति पथ प्रदर्शन', दर्शन खण्ड, अध्याय ११, पृ. ६४ २६०. नयचक्र, गाथा ५८ २६१. आलाप पद्धति, स्वभाव व्युत्पत्ति अधिकार, सूत्र १०६ २६२. आलाप पद्धति, स्वभाव व्युत्पत्ति अधिकार, सूत्र १०७ २६३. आलाप पद्धति, स्वभाव व्युत्पत्ति अधिकार, सूत्र १०८ २६४. आलाप पद्धति, स्वभाव व्युत्पत्ति अधिकार, सूत्र १०९ २६५. आलाप पद्धति, स्वभाव व्युत्पत्ति अधिकार, सूत्र ११० २६६. आलाप पद्धति, स्वभाव व्युत्पत्ति अधिकार, सूत्र १११ २६७. आलाप पद्धति, स्वभाव व्युत्पत्ति अधिकार, सूत्र ११२ २६८. आलाप पद्धति, स्वभाव व्युत्पत्ति अधिकार, सूत्र ११३ २६९. आलाप पद्धति, स्वभाव व्युत्पत्ति अधिकार, सूत्र ११४ २७०. आलाप पद्धति, स्वभाव व्युत्पत्ति अधिकार, सूत्र ११५ २७१. आलाप पद्धति, स्वभाव व्युत्पत्ति अधिकार, सूत्र ११६
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