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________________ २०४ जैनदर्शन में कारण-कार्य व्यवस्था : एक समन्वयात्मक दृष्टिकोण बुद्धचरित में स्वभाववाद का स्पष्ट उल्लेख करते हुए कहा गया है 'केचित्स्वभावादिति वर्णयन्ति शुभाशुभं चैव भवाभावौ च । ९१ इसी बुद्धचरित में अश्वघोष ने स्वभाववाद से सम्बद्ध एक श्लोक लिखा है जो स्वभाववाद का वर्णन करते समय लगभग सभी दार्शनिक कृतियों में उद्धत हुआ है, वह श्लोक है "" कः कण्टकस्य प्रकरोति तैक्ष्ण्यं विचित्रभावं मृगपक्षिणां वा । स्वभावतः सर्वमिदं प्रवृत्तं न कामचारोऽस्ति कुतः प्रयत्नः ।। २९२ स्वभाववाद के बीज वेद, उपनिषद्, पुराण आदि में भले ही उपलब्ध रहे हों और स्वभाववाद का स्पष्ट रूप भी पुराण में मिलता हो तथापि बुद्धचरित का उपर्युक्त श्लोक ही सभी दार्शनिक कृतियों में स्वभाववाद के निरूपण के समय उद्धृत होने से अपनी महत्ता एवं प्राचीनता प्रकट करता है। पाँचवीं शती ई. में बृहत्संहिता में स्वभाव को कारण मानने का उल्लेख वराहमिहिर ने स्पष्ट रूप से किया है कालं कारणमेके स्वभावमपरे जगुः कर्म्म ।। २९३ सांख्यकारिका में दुःख को स्वभावजन्य प्रतिपादित किया गया है- तस्माद् दुःखं स्वभावेन । २९४ माठरवृत्ति में स्वभाव की कारणता का स्पष्ट उल्लेख हुआ हैकेन शुक्लीकृता हंसाः शुकाश्च हरितीकृताः । स्वभावव्यतिरेकेण विद्यते नात्र कारणम् ।।१९५ अक्षपाद गौतम के न्याय सूत्र में भी स्वभाववाद का उल्लेख हुआ हैअनिमित्ततो भावोत्पत्तिः कण्टकतैक्ष्ण्यादिदर्शनात् । २९६ वाक्यपदीय में भर्तृहरि ने स्वभाव की व्याख्या करते हुए कहा है स्वरवृत्तिं विकुरुते मधौ पुंस्कोकिलस्य कः । २९७ जन्त्वादयः कुलायादिकरणे केन शिक्षिताः । । बौद्ध दार्शनिक शान्तरक्षित ( ७०५ ई.) ने तत्त्वसंग्रह में स्वभाववाद का विधिवत् उपस्थापन एवं प्रत्यवस्थान किया है। उन्होंने स्वभाववाद की प्रस्तुति में एक नया श्लोक दिया है राजीवकेसरादीनां वैचित्र्यं कः करोति हि । मयूरचन्द्र कादिर्वा विचित्रः केन निर्मितः ।। , २९८ उदयनाचार्य ने न्यायकुसुमांजलि में आकस्मिकवाद के अन्तर्गत स्वभाववाद पूर्वपक्ष को प्रस्तुत कर उसका उत्तर पक्ष भी दिया है तथा उसे नियतपूर्ववृत्तित्व रूप में अंगीकार किया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002509
Book TitleJain Darshan me Karan Karya Vyavastha Ek Samanvayatmak Drushtikon
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShweta Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2007
Total Pages718
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size11 MB
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