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स्वभाववाद १९९
अभव्य स्वभाव 'कालत्रयेऽपि परस्वरूपाकाराऽभवनात् अभव्यस्वभावः R७० तीनों कालों में कदापि पर द्रव्यस्वरूपाकार न होने के कारण अभव्य स्वभाव है।
(ii) विशेष स्वभाव नयचक्र के निम्न श्लोक में सभी विशेष स्वभावों को गिनाया गया है
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२७१
परम स्वभाव
'पारिणामिकस्वभावत्वेन परमस्वभावः प्रत्येक
द्रव्य अपने-अपने स्वतः सिद्ध पारिणामिक स्वभाव में रहते हैं, इसलिए परम स्वभाव है।
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चेतन, अचेतन, मूर्त, अमूर्त, एकप्रदेशी, बहुप्रदेशी, शुद्ध, अशुद्ध, विभाव और उपचरित ये दस विशेष स्वभाव हैं, क्योंकि ये सभी द्रव्यों में नहीं पाये जाते, किसी किसी में ही पाए जाते हैं।
'चेदणमचेदणं पि हु मुत्तममुत्तं च एगबहुदेसं ।
२७२
सुद्धासुद्धविभावं उवयरियं होइ कस्सेव ।।
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. २७३
चेतन स्वभाव 'अणुहवभावो चेयणम्' अनुभवन रूप भाव को चेतन कहते हैं। जो जानता देखता है, वह सचेतन है । अतः जानने, देखने या अनुभवन करने रूप भाव को चेतन स्वभाव कहते हैं।
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• अचेतन स्वभाव ' अचेयणं होई तस्स विवरीयं ७४ चेतन से विपरीत भाव को अचेतन कहते हैं। जिसमें जानने, देखने या अनुभव करने की शक्ति नहीं होती वह अचेतन है । इस प्रकार चेतन के विपरीत भाव को अचेतन स्वभाव कहते हैं।
मूर्त स्वभाव - ' रुवाइपिंडमुक्तं ५ रूप, रस आदि गुणों के पिण्ड को मूर्त कहते हैं। जिसमें रूप, रस, गन्ध और स्पर्श गुण पाए जाते हैं, वह मूर्तिक है और इन भावों से युक्त मूर्त स्वभाव है।
अमूर्त स्वभाव 'विवरी ताण विवरीयं ७६ ( अमुत्त) मूर्त से विपरीत को अमूर्त कहते हैं। जिसमें रूप, रस, गंध और स्पर्श गुण नहीं पाए जाते हैं, वह अमूर्तिक है।
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एक प्रदेश स्वभाव 'खेत्तं परसणाणं एक्कं'
₹२७७ क्षेत्र को प्रदेश
कहते हैं। द्रव्य का एकप्रदेशित्व भाव एकप्रदेश स्वभाव है। पुद्गल का
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