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स्वभाववाद १६३ जैन मत में मान्य स्वभाव का स्वरूप- स्वभाव को कारण मानने में जैन दर्शन को कोई क्षति नहीं है। क्योंकि 'स्वो भावः स्वभाव:' के अनुसार अपने भाव को यानी स्वकीय उत्पत्ति को ही स्वभाव कहा है और वह पदार्थों की उत्पत्ति में आर्हतों को इष्ट ही है।१२८
स्वभाव भी समस्त जगत् का कारण है- 'स्वो भावः स्वभावः 'व्युत्पत्ति के अनुसार जीव-अजीव, भव्यत्व-अभव्यत्व, मूर्तत्व-अमूर्तत्व अपने स्वरूप में ही होते हैं तथा धर्म, अधर्म, आकाश एवं काल का भी अपना स्वभाव है। धर्म का गति, अधर्म का स्थिति, आकाश का अवगाहन और काल का परत्व-अपरत्व आदि स्वरूप भी स्वाभाविक है।९२९ क्रियावाद और अक्रियावाद में स्वभाववाद के भेद
सूत्रकृतांग में सूत्रकार ने 'जगत्कर्तृत्ववाद' के प्रसंग में तत्कालीन मान्यताओं का उल्लेख करते हुए, उनको क्रियावाद, अक्रियावाद, विनयवाद और अज्ञानवाद के रूप में विभक्त किया है। इनके भेद और उपभेद का विस्तार से विवेचन 'कालवाद' नामक अध्याय में किया गया है।३° अत: यहाँ संक्षेप में 'स्वभाववाद' को प्रस्तुत किया जा रहा है
क्रियावादियों के १८०, अक्रियावादियों के ८४, अज्ञानवादियों के ६७ और विनयवादी के ३२ भेद हैं। क्रियावाद में कालवाद, आत्मवाद, नियतिवाद और स्वभाववाद का तथा अक्रियावाद में कालवाद आदि पाँच के अतिरिक्त यदृच्छावाद का भी समावेश हुआ है। अज्ञानवादी और विनयवादी के भेदों में काल आदि का उल्लेख नहीं है।
___क्रियावादी और अक्रियावादी के अन्तर्गत 'स्वभाववाद' का निम्न स्वरूप व्यक्त हुआ हैक्रियावादी में स्वभाववाद के भेद १. जीव स्वत: नित्य स्वभाव से २. जीव स्वत: अनित्य स्वभाव से ३. जीव परत: नित्य स्वभाव से ४. जीव परत: अनित्य स्वभाव से ५. अजीव स्वतः नित्य स्वभाव से ६. अजीव स्वत: अनित्य स्वभाव से ७. अजीव परत: नित्य स्वभाव से ८. अजीव परतः अनित्य स्वभाव से ९. आस्रव स्वतः नित्य स्वभाव से १०. आस्रव स्वत: अनित्य स्वभाव से ११. आस्रव परत: नित्य स्वभाव से १२. आस्रव परत: अनित्य स्वभाव से
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