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कालवाद ११५ नारायण उपनिषद् में काल को किसी अपेक्षा से नारायण कहा है- कालश्च नारायणः।१७१ कालवादियों के संबंध में उल्लेख गौड पाद कारिका में प्राप्त होता है, वहाँ कहा है- कालात् प्रसूतिं भूतानां मन्यन्ते कालचिन्तकः।७२ श्वेताश्वतरोपनिषद् में भी जगत् के कारणों की चर्चा में काल का भी कथन हुआ है। शिव पुराण में कालवाद का सिद्धान्त सम्पूर्ण रूप में अभिव्यक्त हुआ है
कालादुत्पहाते सर्व, कालादेव विपाते।
न कालनिरपेक्ष हि क्वचित्किंचिद्धि विद्याते।।७३
महाभारत में काल को सामान्य कारण तथा विशेष कारण के रूप में प्रतिपादित किया गया है। कालवाद की मान्यताओं का महाभारत में यत्र-तत्र पर्याप्त उल्लेख सम्प्राप्त होता है। यही नहीं कालवाद पर महाभारत में ओक्षप भी किया गया है। इसका अर्थ है कि उस समय मात्र काल की कारणता के सिद्धान्त पर प्रश्न चिह्न खड़ा होने लगा था।
कालवाद का यदि व्यवस्थित एवं विकसित रूप देखना हो तो ज्योतिर्विद्या के ग्रन्थ इसके निदर्शन हैं। क्योंकि ज्योतिर्विद्या कालगणना पर आधारित विद्या है। जिसमें ग्रह, नक्षत्रों के साथ काल ही प्रमुख कारण के रूप में अंगीकार किया गया है।
___ भारतीय दर्शन की विभिन्न परम्पराओं में काल के स्वरूप एवं उसकी कारणता पर विचार हुआ है। वैशेषिक दर्शन में काल को द्रव्य के रूप में स्थापित किया गया है। उसे एक एवं नित्य मानते हुए भी भूत-भविष्य और वर्तमान का व्यवहार स्वीकार किया गया है। काल को वैशेषिक दर्शन में सामान्य कारण स्वीकार किया गया है। चिर, क्षिप्र, परत्व-अपरत्व आदि में उसे विशेष कारण अंगीकार किया गया है। सांख्य दर्शन चार प्रकार की आध्यात्मिक तुष्टियों में काल को तृतीय तुष्टी के रूप में अंगीकार करते हए कहा गया है कि काल की अपेक्षा रखकर ही विवेकख्याति सिद्ध होती है। वेदान्त दर्शन में नैमित्तिक प्रलय में काल को निमित्त बताया गया है। व्याकरण दर्शन में इसे अमूर्त क्रिया के परिच्छेद (मापन) का हेतु स्वीकार किया गया है। योग दर्शन में यह क्षण और क्रम के रूप में विवेचित है। वहाँ क्षण को वास्तविक एवं क्रम का आधार बताया गया है।
जैन वाङ्मय में भी कालवाद की पर्याप्त चर्चा हुई है। जैन दार्शनिकों ने कालवाद के स्वरूप का निरूपण करने के साथ उसका निरसन भी किया है। जैनागों में काल को एक द्रव्य तो प्रतिपादित किया गया है किन्तु कालवाद का पृथक् रूप से स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता है। सूत्रकृतांग में कथित 'ईसरेण कडे लोए पहाणाति
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